रविवार, 5 जून 2022

आसां नही है बड़ा भाई होना : प्रदीप चौहान

पिता की उम्मीदें जानता हूं,
मां की आशाएं पहचानता हूं।
भाइयों की विचारधारायें हैं,
पारिवारिक कुछ मर्यादाएं हैं
सब उम्मीदों का सामंजस्य ढोना,
आसां नही है बड़ा भाई होना।

उम्र के जिस पड़ाव पर तू है,
जीवन के जिस चढ़ाव पर तु है।
समझ की नादानी बेड़ियां ना बनें,
पहचान की कोई भेड़ियाँ ना बने।
स्वयं के इतिहास से शिक्षा देना,
आसां नही है बड़ा भाई होना।

'निर्भया' है देखा मैंने
'माधुरी' भी देखी मैंने।
मनचलों की बड़ी तादाद है 
शोषकों की बड़ी ज़मात है।
आंख कान हरदम खुला होना,
आसां नही है बड़ा भाई होना।

Kavi Pradeep Chauhan