शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2018

अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी। : प्रदीप चौहान


क्षेत्रिय घेराव बना बिहार की मजबूरी
समुन्द्र तट न होना है बड़ी कमजोरी
नही अंतराष्टीय जान पहचान
न कोई व्यापारिक आदान प्रदान
सह रहे रोजी रोटी की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

एक हिस्से में बाढ़ का अत्याचार
दूजा हिस्सा झेलता सुखे की मार
छोड़ना पड़ जाता लाखों को घर बार
पलायन ही बचता जीवन आधार
सह रहे कुदरत की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

बिजली, सड़क की जर्जर अवस्था
सरकार न कर पायी निवेशकों की व्यवस्था
शुगर मिल व उर्वरक भी हुए बन्द
विकास की गति सबसे ज्यादा है मंद
सह रहे राजकीय विफलता की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

सियासी फायदों से राज्य हुआ विखंड
खनन-खनिज सब गए झारखंड
न टाटा रहा,न हांथ रहा बोकारो शहर
न बचा उद्योग,गिरा रोजी रोटी पे कहर
सह रहे सियासी बंटवारे की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

भाड़ा समीकरण निति, ऐसी कूटनीति
माल ढुलाई में सरकारी छुट की राजनीति
लूट गया बिहार का कच्चा माल
महाराष्ट्र, गुजरात भये मालामाल
सह रहे प्रांतीय शोषण की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

आये ऐसे भ्रस्ट नेता, चारा तक को लपेटा
न शुरू किया कोई धंधा, न बड़ा व्यापार
जातिय राजनीति से राज्य का किया बंटाधार
विकास के दौड़ में बिहार हुआ असफल हरबार 
सह रहे भ्रस्टाचार की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

प्रदीप चौहान

8 टिप्‍पणियां:

  1. Bihar ki history ke jariye vaha ki vastavik samasya ke jad tak pahunchne ka bahot umda prayas kiya hai. aapki laino me sachai hai. vastavik samasya ko bahoot achche se bataya hai aapne. bahoot badhiya kavita hai aapki.

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  2. Great Poetry hai sir, Sachchai bataya hai aapne, har rajya me UP aur Bihar ke logon ko dar dar ke rahna padta hai. bahoot se ghatnayen to log batate hi nhi hai dar ki vajah se. Aapki kavita puri sachchai dikhati hai ki Bihar pichhda kyon hai. asal karan aapne kavita me dikhaya hai... Bahoot badhiya sir

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  3. Nice Poem sir, You have explained the real problems and real reason of backward of Bihar. I read your all poetry, You write really well. Keep writing and showing reality to the society.

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Kavi Pradeep Chauhan