बुधवार, 5 अप्रैल 2023

कफ़न : प्रदीप चौहान

मेरे दुश्मन तू मुझ में से कब निकलेगा,
रोम रोम बसा अब ज़हर कब निकलेगा।
खत्म होने की कगार पर है मेरी पहचान,
अब निकल वर्ना मेरा कफ़न निकलेगा।

दोस्त निकलते गये आगे मैं पीछे रह गया,
सबके हुए पूरे पर हर सपना मेरा ढह गया।
बहुत चले पर मंज़िल अब भी कोसो दूर है,
संभाला था डूबने से वो तिनका भी बह गया।

अपनो से मिलता ताना ना ज़हन से निकलेगा,
विफलता का अज़गर ना चन्दन से निकलेगा।
निकलेगा प्राण भी इस चलते फिरते शव से,
गर आलस्य का ज़हर ना बदन से निकलेगा।

Kavi Pradeep Chauhan