सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

कर्तव्य पथ पर खड़ा ये देश का स्वाभिमान।

 









दीवारों पर लिखे हजारों शहीदों के नाम,

युधस्मारक ये गड़तंत्र भारत की पहचान।

अमर जवान ज्योति देती हरपल श्रधांजलि,

कर्तव्य पथ पर खड़ा ये देश का स्वाभिमान।

हे मंजिल तु मुझे मिलती क्यों नहीं : प्रदीप चौहान

 

कितनी खुशियों को हमने छोड़े 

कितने अपनों से हमने मुंह मोड़े 

पल पल मारते रहे इच्छाओं को 

हर कदम तकते रहे आशाओं को

पल पल चाहा हरपल की कोशिश

हे मंजिल तु मुझे मिलती क्यों नहीं?


घर छोड़े हमने अपना गांव छोड़ा 

मां की ममता भरा हर छांव छोड़ा 

दोस्ती छोड़ी अपने हर दोस्त छोड़े

बन परदेसी हमने रिश्ते नाते तोड़े

पल पल चाहा हरपल की कोशिश

हे मंजिल तु मुझे मिलती क्यों नहीं?


गेहूं की सरसराती बालियां छोड़ी 

धान की मखमल पेठारियाँ छोड़ी

लहलहाते हुए हमने खेत छोड़ें 

छोड़ा दिया हमने बाग बगीचा।

पल पल चाहा हरपल की कोशिश

हे मंजिल तु मुझे मिलती क्यों नहीं?

लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा : प्रदीप चौहान


लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा : प्रदीप चौहान


जनतंत्र का जो पर्व  है बड़ा, 

चुनाव रूपी फ़रेब का है घड़ा।

बोटी बोटी का है ख़रीद फरोख,

मर अब गया तेरा अपना कोख़।

अंग अंग आइ सी यू में पड़ा,

लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा।


विधायिका बनी ग़ुलाम अमीरों की,

करती पैरवी राजनीतिक जागीरों की।

करोड़ों की छीनती ज़मीनें खुलेआम,

चंद घरानों को करती मालामाल।

अंग अंग आइ सी यू में पड़ा,

लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा।


कार्यपालिका में फैला घोर भ्रष्टाचार,

रिश्वत लेनदेन का फैला मैला व्यापार।

बिना रिश्वत बाप को बाप नहीं कहता,

हर कुर्सी पर बैठा ज़िंदा जोंक है रहता।

अंग अंग आइ सी यू में पड़ा,

लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा।


न्याय-पालिका बनी अन्याय सलीक़ा,

आमजन के शोषण दमन का तरीक़ा।

ग़रीब दबे-कुचलों को देती ये सज़ा,

अमीर संपन्नों को परोसती ये मज़ा।

अंग अंग आइ सी यू में पड़ा,

लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा।


चौथा स्तम्भ इस क़दर मरा,

चंद घरानों के तलवों में पड़ा।

भूल धर्म-ए-पत्रकारिता,

कर रहा ये चाटुकारिता।

शेष साँसों को इसने है मारा,

लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा।

Kavi Pradeep Chauhan