लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा : प्रदीप चौहान
जनतंत्र का जो पर्व है बड़ा,
चुनाव रूपी फ़रेब का है घड़ा।
बोटी बोटी का है ख़रीद फरोख,
मर अब गया तेरा अपना कोख़।
अंग अंग आइ सी यू में पड़ा,
लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा।
विधायिका बनी ग़ुलाम अमीरों की,
करती पैरवी राजनीतिक जागीरों की।
करोड़ों की छीनती ज़मीनें खुलेआम,
चंद घरानों को करती मालामाल।
अंग अंग आइ सी यू में पड़ा,
लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा।
कार्यपालिका में फैला घोर भ्रष्टाचार,
रिश्वत लेनदेन का फैला मैला व्यापार।
बिना रिश्वत बाप को बाप नहीं कहता,
हर कुर्सी पर बैठा ज़िंदा जोंक है रहता।
अंग अंग आइ सी यू में पड़ा,
लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा।
न्याय-पालिका बनी अन्याय सलीक़ा,
आमजन के शोषण दमन का तरीक़ा।
ग़रीब दबे-कुचलों को देती ये सज़ा,
अमीर संपन्नों को परोसती ये मज़ा।
अंग अंग आइ सी यू में पड़ा,
लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा।
चौथा स्तम्भ इस क़दर मरा,
चंद घरानों के तलवों में पड़ा।
भूल धर्म-ए-पत्रकारिता,
कर रहा ये चाटुकारिता।
शेष साँसों को इसने है मारा,
लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा।
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