तुम्हारी गली जाने का हर काम लेते थे,
तेज लफ़्ज़ों में दर तेरे मेरा नाम लेते थे।
बात बात पर कराते थे तुम्हारा एहसास,
मेरे दोस्त हमारे रिश्ते को पहचान देते थे।
तुम्हारे घर को न ताके कोई पैग़ाम देते थे,
उस गली से न गुजरे कोई फ़रमान देते थे।
तुम्हें तकने वाले से झगड़ना थी आम बात,
मेरे दोस्त हमारे रिश्ते को पहचान देते थे।
तुम्हारे आने का हर दिन पयाम देते थे,
हमें मिलाने का हर नया मुकाम देते थे।
साम दाम दंड भेद अपनाते हर हथकंडे,
मेरे दोस्त हमारे रिश्ते को पहचान देते थे।
तुम भई पराई पर दोस्त हरपल अपने थे
वो दोस्त थे, दोस्ती थी, जिंदा हर सपने थे
तुम्हारे चले जाने पर न टूटने देते थे मुझे
मेरे दोस्त हमारे रिश्ते को पहचान देते थे।
एक दोस्त ही तो है जिन्हे इंसान खुद अपने आप से पसन्द करता है, वरना बाकी सब तो बस फॉकट का उपर वाले ने सभी को दिया है/😊😊✌
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