शुक्रवार, 31 मार्च 2023

मेरे दुश्मन: प्रदीप चौहान

दोस्त निकलते गये आगे मैं पीछे रह गया,
सबके हुए पूरे पर हर सपना मेरा ढह गया।
बहुत चले पर मंज़िल अब भी कोसो दूर है,
संभाला था डूबने से वो तिनका भी बह गया।

प्रदीप चौहान

अब कफ़न निकलेगा: प्रदीप चौहान

मेरे दुश्मन तू मुझ में से कब निकलेगा,
रोम रोम बसा अब ज़हर कब निकलेगा।
खत्म होने की कगार पर है मेरी पहचान,
अब निकल वर्ना मेरा कफ़न निकलेगा।

प्रदीप चौहान

गुरुवार, 9 मार्च 2023

किताबों से : प्रदीप चौहान


जिंदगी के कुछ पन्ने जो रह गए बिन गढ़े,
सीखो लेखन का हर सलीक़ा, किताबों से।

दबी है कुछ कर गुजरने की आग गर सीने में,
जानों कथन का नया तरीका, किताबों से।

मोबाइल की अति बनी अभिशाप मनुष्य की,
बदल दो भटकाव का ये जंजाल, किताबों से।

सोशल मीडिया करता भस्म समय कीमती,
रोको भस्मासुर का परचम लहराना, किताबों से

ज्ञान है इक आधार जो बदल दे हर हालात,
करो अर्जित इल्म का खज़ाना, किताबों से।

जागो, पढ़ो, बढ़ो, करो हांसिल हर मंज़िल,
लिखो सफलता का अफसाना, किताबों से।

प्रदीप चौहान

Kavi Pradeep Chauhan