आंखों को हमारे वो पढ़ नहीं पाते
ये होंठ उनसे कुछ कह नहीं पाते
दिल का हाल बयां कैसे करें यारों
उनसे फासला अब सह नहीं पाते।
इंतजार में उनके यह दिल तड़पता है।
दीदार को उनके यह दिल तरसता है l
ऐसा क्या करें कि वह हमारे हो जाए,
इकरार को उनके यह दिल तरसता है।
पड़ोसियों से अड़चने तेज हो जाती हैं
गलियों में धड़कनें तेज हो जाती हैं
मिलना उनसे इस कदर हुआ है मुश्किल
दर उनके गर भटके तो जेल हो जाती है।
यह कहानी अब अधूरी ही रह जाएगी
यह तड़प अब गैरजरूरी ही रह जाएगी
ऐसा हो कि बस इक बार मिलना हो जाए
हीर रांझा के बिना ही अब मर जाएगी।
उनसे नजरों का मिलना कुछ तो कहता है
उनके लबों का मचलना कुछ तो कहता है
हमारी चाहत का लगता असर है प्रदीप्त
उनके चेहरे का खिलना कुछ तो कहता है।
प्रदीप चौहान