सोमवार, 10 जून 2024
शुक्रवार, 24 मई 2024
चमक
खामोशी
शनिवार, 30 मार्च 2024
किताबों से : प्रदीप चौहान
शनिवार, 22 अक्टूबर 2022
रविवार, 21 नवंबर 2021
नशे की गिरफ्त में बच्चे : प्रदीप चौहान
बुधवार, 1 सितंबर 2021
लूट गया सम्मान
बुधवार, 25 अगस्त 2021
रविवार, 18 जुलाई 2021
स्लम एक सज़ा : प्रदीप चौहान
भाई-बेटों के मरे ज़मीर की सजा काटती है।
राखी व दूध के कर्ज़ चुकाई को तरसती है।
अपनों के मरे सम्मान का अपमान सहती हैं।
भाइयों के बेरुखी से शारीरिक मजबूती को तरसते हैं।
अभिभावकों की नाकामी से कलह उपजते हैं।
माँ पिता के असफल परवरिश की पोल खोलते हैं।
तमाशबीन गुनहगारों की नामर्दगी से बढ़ते हैं।
मंगलवार, 29 जून 2021
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा : प्रदीप चौहान
वक़्त तु ज़ुल्म इतना ना कर
यूँ बेरहमी की इंतहां ना कर
माना लाचार हैं हम तेरी मार से
पर नहीं रुकेंगे क्षणिक हार से
जीने का जज़्बा हमें उठाएगा
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा।
माना तैयारियाँ कम पड़ गई
अपनी ही साँसे मंद पड़ गई
आँखों में आँसुओं की धार है
शमशनों में विकराल क़तार है
जीने का जज़्बा हमें उठाएगा
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा।
अभी तो हमने कुछ किया ही नहीं
जीवन का हर रंग जिया ही नहीं
अपनों से किए वादे अभी अधूरे हैं
कई सपने हुए ही नहीं अभी पुरे हैं
जीने का जज़्बा हमें उठाएगा
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा।
इतनी जल्दी नहीं हारेंगे हम
हर अपने को सम्भालेंगे हम
तेरे हमलों से लड़ेंगे फिर इकबार
ख़ुद को खड़ा करेंगे फिर इक़बार
जीने का जज़्बा हमें उठाएगा
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा।
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा।
बुधवार, 10 मार्च 2021
भार : प्रदीप चौहान
हद से ज्यादा भार लेकर दौड़ा नहीं जाता
साथ सारा संसार लेकर दौड़ा नहीं जाता ।
दौड़ो अकेले अगर पानी है रफ़्तार
जिम्मेदारियों का पहाड़ लेकर दौड़ा नहीं जाता।
बदलाव : प्रदीप चौहान
अकेले चल इंसान बदल जाते हैं
ले साथ चलें तो बदलाव लाते हैं।
उस सफलता के मायने ही क्या
मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021
शनिवार, 5 सितंबर 2020
मैं शिक्षालय हुँ : प्रदीप चौहान
बेटियों को पढ़ाया
बहनों को निर्भर बनाया
माताओं को सम्मान दिलाया
परिवारों में जागरुकता फैलाया
हज़ारों सपनों को साकार बनाया
और लाखों नए सपनों के लिए
मैं चलना चाहती हुँ
मैं चलते रहना चाहती हुँ
अनाथों को अपनाया
बेसहारों को सम्भाला
असहायों का साथ निभाया
लाखों को शिक्षित बनाया
ये कर्तव्य रहा है मेरा
ये पहचान रही है मेरी
अपनी इसी पहचान के लिए
मैं चलना चाहती हुँ
मैं चलते रहना चाहती हुँ
मैं वही हुँ
जहाँ तुम्हारी ढेरों यादें जुड़ी हैं
यादें तुम्हारे बचपन की
यादें तुम्हारे लड़कपन की
दोस्ती के बड़प्पन की
यादें तुम्हारे पढ़ने की
यादें तुम्हारे खेलने की
साथियों के लंच लुटने की
वैसी ही हज़ारों नयी यादों के लिए
मैं चलना चाहती हुँ
मैं चलते रहना चाहती हुँ
आप जैसे अपनों के लिए
लाखों असहाय सपनों के लिए
भटकों को राह दिखाने के लिए
मजबूरों का साथ निभाने के लिए
बेसहारों के सहारे के लिए
शिक्षा रूपी उजाले के लिए
मैं चलना चाहती हुँ
मैं चलते रहना चाहती हुँ
मुझे ज़रूरत है
मेरे अपनों की
नए विचारों की
नए नवाचारों की
नए पहल की
क्योंकि मेरे अपनों के लिए
लाखों नए सपनों के लिए
मैं चलना चाहती हुँ
मैं चलते रहना चाहती हुँ
मैं शिक्षालय हुँ।
मैं दीपालय हुँ।
मैं विध्यालय हुँ।
शुक्रवार, 14 अगस्त 2020
गुरुवार, 7 मई 2020
हे मज़दूर तेरी कैसी ये गाथा है। : प्रदीप चौहान
Kavi Pradeep Chauhan |
सुविधावों की कमी जंजाल बन बैठा
ऑक्सीजन की कमी से तेरी सांसें थमती
संसाधनों के किल्लत से तेरी आँखें नमति
ये सिस्टम तेरा सब कुछ लूट ले जाता है
हे मज़दूर तेरी कैसी ये गाथा है।
हालातों का ज़िम्मेदार कौन पहचानना होगा
मृत सिस्टम का, क्यों नहीं करता तू उपचार है
हो एकजुट, की व्यवस्था परिवर्तन की दरकार है
सब समझकर भी तू चुप हो जाता है
-
क्षेत्रिय घेराव बना बिहार की मजबूरी समुन्द्र तट न होना है बड़ी कमजोरी नही अंतराष्टीय जान पहचान न कोई व्यापारिक आदान प्रदान स...
-
रोज़गार व बेहतर ज़िंदगी की तलाश मे न चाहकर भी अपना घर परिवार छोड़कर शहरों मे आने का सिलसिला वर्षों से चलता आ रहा है। पलायन करने वाले हर व्य...
-
Water problem in slum दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में पीने के पानी की समस्या वहाँ की सबसे बड़ी समस्या है। यहां युवाओं का झुंड आंदोलित है...