मंगलवार, 28 अगस्त 2018

नटखट सी: प्रदीप चौहान

ये कविता पिता और नन्ही बेटी के बीच पवित्र प्यार, दुलार, खुशी, नाराजगी, शरारत भरी दिनचर्या को दर्शाता है।
और साथ ही साथ पति पत्नी के आपसी झगड़ो की वजह से बच्चों के परवरिश में होन वाले दुष्प्रभाव की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है।
नटखट सी, फ़टफ़ट सी
चेहरे पर हरपल हंसी
सरारतों की खान, 
नाटक में महान
चिड़ियों सी मधुर चहचहाहट
खुशियां बिखेरना उसकी पहचान 
नटखट सी, फ़टफ़ट सी
नटखट सी, फ़टफ़ट सी


परियों से भी प्यारी है
पापा की नन्ही दुलारी है।
भालू शेर की नकल करवाती
घोड़ा बनने की जिद्द पे अड़ जाती
उंगली पकड़ दूर तक चलाती।
थक कर पापा की गोद में पड़ जाती
नटखट सी, फ़टफ़ट सी
नटखट सी, फ़टफ़ट सी

दरवाजे पे इन्तेजार वो करती
देर होने पे तकरार वो करती।
आहट सुन दौड़ कर आती
कूद के सीने से लग जाती।
नटखट सी, फ़टफ़ट सी
नटखट सी, फ़टफ़ट सी


सवालों का अम्बार लगाती
दिन भर की हर बात सुनाती।
दौड़ दौड़ के गाना गाती
पापा आये-पापा आये,
नाच नाच सबको बतलाती।
नटखट सी, फ़टफ़ट सी
नटखट सी, फ़टफ़ट सी


कंधे पर चढ़ जाती है
झूम झूम कर गाती है
एक सांस में ही सारे हुनर की,
झाकियां दिखाए जाती है।
नटखट सी, फ़टफ़ट सी
नटखट सी, फ़टफ़ट सी

कविता-कहानियों की खीचड़ी का
अम्बार लगाए जाती है।
और सुनाऊ और सुनाऊ
पूछ पूछ इतराती है।
सबको ये हंसाती है,
खुशियां ये फैलाती है।
नटखट सी, फ़टफ़ट सी
नटखट सी, फ़टफ़ट सी

Kavi Pradeep Chauhan