तेरी ये लड़ाई तो ख़ुद से है,
दब रहा अपनों के सुध से है।
थामें रिश्ते जो शमशान भए,
अब तो टूट सारे अरमान गए।
तूने झोंका सर्वस्व अपनों के वास्ते,
ख़ंजर ही मिला उम्मीदों के रास्ते।
अच्छाइयाँ तेरी कमज़ोरी बनी,
क़ुर्बानियाँ किसी को नहीं भली।
हर आशा से तुझे मिली निराशा,
हर सपने से मिला दुःख बेतहाशा।
चुप छुपकर क्यों तड़पता है,
‘प्रदीप्त’ घुटकर क्यों मरता है।
निराशा भरी ये मटकी तोड़ दे,
थक गया गर तो जीना छोड़ दे।
Mujhe ye poem bahut achi lagi hai sir ji you are great sir jii
जवाब देंहटाएंI like you poem sor jii god line,,,👌👌👌👌👌
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