गुरुवार, 11 मार्च 2021

जीवित रहना जंग है : प्रदीप चौहान

Kavi Pradeep Chauhan


अर्थव्यवस्था मंद है

महँगाई भई प्रचंड है

ग़रीब झेलता दंड है

जीवित रहना जंग है।


जेब सबके तंग हैं

कमाई हुई बंद है

ज़िंदगी कटी पतंग है

जीवित रहना जंग है।


कुछ घराने दबंग हैं

हर सत्ता उनके संग है

बेशुमार दौलती रंग है

जीवित रहना जंग है।


शासन सत्ता ठग है

बेइमानी बसा रग है

लूट-खसोट का जग है

जीवित रहना जंग है।


भावी पीढ़ी मलँग हैं

सुलगते नफ़रती उमंग हैं

बढ़ते धार्मिक उदंड हैं

जीवित रहना जंग है।


बेरोज़गारी भुज़ंग है

बेकारी करे अपंग है

हर जवाँ हुनर बेरंग है

जीवित रहना जंग है।


मज़दूर किसान तंग है

आन्दोलन पर बैठे संग है

कारपोरेट गोद में संघ है

जीवित रहना जंग है।


1 टिप्पणी:

Kavi Pradeep Chauhan