ये कविता छोटी छोटी बच्चियों के साथ हो रहे बलात्कार, यौन शोषण व अत्याचार की वजह से आहत एक माँ के द्वारा अपनी नन्ही बेटी को दी जाने वाली शिक्षा पर आधारित है। और एक पिता के चिंतन के द्वारा समाज का आईना प्रस्तुत करने की एक कोशिश है।
मन में उमंग,
चेहरे पर हंसी
नज़रों में जिज्ञासा,
कुछ जानने की आशा
लुभाती किसी चीज के लिए
जैसे ही बेटी ने कदम बाहर बढ़ाये
थमें पैर सुन माँ की तेज आवाज़
"नही बेटे...अकेले बाहर नही जाते"।
आया माथे पर सिकन,
चेहरा मुरझाया
बेटी ने कदम पापा की ओर बढ़ाया
"क्यो पापा ?"
बेटी ने ये प्रश्न सुनाया
आंखों में टकटकी,
जवाब न समझ आया।
पत्नी पर क्रोध उमड़
विचलित मन
कारण की ओर दौड़ाया
एक माँ के मन मे ये विचार क्यों आया
तो हलख से एक शब्द भी न निकल पाया।
ये सिख जीस आधुनिक माँ ने रटाया
शिक्षित, प्रशिक्षित, तकनीक की ज्ञानी
काम पर जाती,
बच्चों को पढ़ाती
घर की सारी जिम्मेदारियां मजबूती से निभाती।
दिन की शुरुआत करती
अखबार की मोटी लाइनें
छेड़खानी,बलात्कार सुसज्जित समाज के आइनें
सोशल मीडिया स्करोलिंग में ये ही पाती बार बार
मन को आघात करते,
टीवी पर सनसनी खबरों की भरमार।
याद है कठुआ, सूरत, मणिपुर के हादसे
आठ की उम्र में बच्चियों से बलात्कार
निर्मम, अमानवीय कृत्य ने
हर माँ का दिल दहलाया
ऐसे इतिहास ने
खुद को कई बार है दोहराया।
सोचता हूँ ये शिक्षाएं
बेटीयों पर क्या असर लाएंगी
बचपन से सुनी ये लाइनें
मस्तिष्क में घर बनाएंगी
अनजान डर उसके हिम्मद को डिगायेंगी
ढूढेंगी किसी का साथ हर क़दम
पंखों को बेड़ियां लग जाएंगी।
जब जब नारी आगे आयी है
तब तब पुरुष समाज हावी है
तोड़ना होगा ये मनुवादी इतिहास
हर पिता, भाई, बेटे की
ये जिम्मेदारी है
ताकि कोई माँ न कहे
किसी बेटी से
" नही बेटे...अकेले बाहर नही जाते।
nice kavita sir
जवाब देंहटाएंBahut umda, keep writing
जवाब देंहटाएंYeh kavita aaj ke samaj ka aaina h..
जवाब देंहटाएंIs pr likhi har bt hum sab humare samaj me dekhte h..
Sir yuhi likhte rahiye..
Ek na ek din ladkiya bhi humare samaj me akele ghum payengi ..
Keep writing.
Sir badiya kese
जवाब देंहटाएंvery nice
जवाब देंहटाएंBeti, maa aur pita ki chinta ko darshati bahoot behtarin kavita hai aapki... Padhte hue aisa mehsus hota hai ki ye hmare upar hi bani hai aur har line hame connect kerti hai. Beautiful Poem sir
जवाब देंहटाएंNice Poem
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