हाथरस में रिपोर्टिंग के लिए अपने प्रवेश को तरसती, आज की मेन-स्ट्रीम मीडिया की लाचारी और इसके कारणों पर चिंतन करती ये कविता।
सत्ता की ग़ुलामी का फल
सरकारों की मेज़बानी फल
चाटूकारिता का भावी असर
आज भुगत रहा है मीडिया।
क़लम के टूटे सम्मान का फल
पत्रकारों के लूटे स्वाभिमान फल
पत्रकारिता के ख़त्म पहचान का असर
आज भुगत रहा है मीडिया।
ख़बरों से किए व्यापार का फल
जनता से किए व्यवहार का फल
टीआरपी को करते दुराचार का असर
आज भुगत रहा है मीडिया।
लोकतंत्र से सीनाज़ोरी का फल
सत्ता से किए गठजोरी का फल
चौथे स्तम्भ की कमज़ोरी का असर
आज भुगत रहा है मीडिया।
जनता के विश्वास की हत्या का फल
जनतंत्र के सम्मान की हत्या का फल
ख़बरों के हिंदुस्तान की हत्या का असर
आज भुगत रहा है मीडिया।
Very nice
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