शनिवार, 31 जुलाई 2021
रविवार, 18 जुलाई 2021
स्लम एक सज़ा : प्रदीप चौहान
माँ-बहनें टंकियों से जब भीख मांगती हैं
भाई-बेटों के मरे ज़मीर की सजा काटती है।
भाई-बेटों के मरे ज़मीर की सजा काटती है।
गिड़गिड़ाहट के शब्द जब लबों पे सजती है
राखी व दूध के कर्ज़ चुकाई को तरसती है।
राखी व दूध के कर्ज़ चुकाई को तरसती है।
घूंघट में पत्नियां जब खुले में शौच चलती हैं
अपनों के मरे सम्मान का अपमान सहती हैं।
अपनों के मरे सम्मान का अपमान सहती हैं।
बैठ बच्चे गली मौहल्लों में जब पार्क को तकते हैं
भाइयों के बेरुखी से शारीरिक मजबूती को तरसते हैं।
भाइयों के बेरुखी से शारीरिक मजबूती को तरसते हैं।
अवैध शराब से जब जवां नशे में लिप्त झूमते हैं
अभिभावकों की नाकामी से कलह उपजते हैं।
अभिभावकों की नाकामी से कलह उपजते हैं।
किशोर जब चोरी,झपटमारी, शॉर्टकट चुनते हैं
माँ पिता के असफल परवरिश की पोल खोलते हैं।
माँ पिता के असफल परवरिश की पोल खोलते हैं।
चंद बिगड़ैल जब खुले में कोई जुर्म रचते हैं
तमाशबीन गुनहगारों की नामर्दगी से बढ़ते हैं।
तमाशबीन गुनहगारों की नामर्दगी से बढ़ते हैं।
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