रविवार, 21 नवंबर 2021

मेरे भाई क्यों तुम भटक गए? : प्रदीप चौहान

दिल्ली की स्लम बस्तियों में दस-दस साल के बच्चों का नशे के दलदल में जाना। छोटी उम्र में नशे का आदि होना, देखकर विचलित मन कुछ सवाल करता है..... 


क्यों जीवन में तुम भटक गए?
क्यों नशे की लत में बहक गए?
क्यों नहीं तुम्हारे कोई सपने हैं?
क्यों नहीं पास तुम्हारे अपने हैं?
क्या तुम्हारा कोई उद्देश्य नहीं?
मां-पिता का कोई उपदेश नहीं?
मेरे भाई क्यों तुम भटक गए?
क्यों नशे की लत में बहक गए?

क्यों जीवन में असमंजस है?
यह कैसी तुम्हारी संगत है?
सुख हो तो तुम नशा करते हो 
दुख हो तो तुम नशा करते हो
मेरे भाई क्यों तुम भटक गए?
क्यों नशे की लत में बहक गए?

माँ से कुछ बात क्यों नहीं करते?
पिता से वार्तालाप क्यों नहीं करते?
क्यों बहन से नहीं झगड़ते तुम?
क्यों भाइयों से नहीं लड़ते तुम?
क्यों तुम्हें पसंद एकांत है?
क्यों मन तुम्हारा अशांत है?
मेरे भाई क्यों तुम भटक गए?
क्यों नशे की लत में बहक गए?

क्यों नहीं सीखते कोई हुनर?
क्यों बर्बाद कर रहे ये उमर?
पिता के चरणों में है बहार सुनो।
माँ के आंचल में है संसार सुनो।
सुनो मंजिलें तुम्हें पुकारती।
चलो की राहें तुम्हें पुकारती।
उठो जीवन को संवारना है।
जागो हालातों को सुधारना है।
मेरे भाई क्यों तुम भटक गए?
क्यों नशे की लत में बहक गए?

1 टिप्पणी:

Kavi Pradeep Chauhan