ना बढ़ावो हाथ किसी के लिए ज्यादा
लोग चढ़ने का पायदान समझ लेते हैं।
ना रहो किसी के लिए मौजूद हर पल
मौजूदगी से लोग बेकार समझ लेते है।
ना जिये जीवन अपनी शर्तों पर अगर
लोग इस्तेमाल अधिकार समझ लेते हैं।
कर दो अपने अधिकारों की बात अगर
शोषक अपना अपमान समझ लेते हैं।
सोच समझ कर कदम रखना हे प्रदीप्त
नई पहल को लोग यलग़ार समझ लेते हैं।
प्रदीप चौहान
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