सोमवार, 10 जून 2024
शुक्रवार, 24 मई 2024
चमक
स्वयं की चमक बनाने के लिए तुझे जलना होगा
अड़चने लाख आएं पर स्वयं ही संभलना होगा।
बुरे हालात पर तेरे हंसेंगे रोज कई जमाने वाले,
पर शिखर पर पहुंचने को तुझे चलते रहना होगा।
खामोशी
कड़वी बातें उसकी त्रिशूल सी चुभती हैं,
हरकतें उसकी अब शूल सी चुभती हैं।
क्यों न दिया उसकी भाषा मे ही जवाब,
खामोशी अपनी बड़ी भूल सी चुभती है।
अंधभक्ति की कोई अब दवाई नहीं बिकती : प्रदीप चौहान
नहीं पैरों तले जमीं पर ज़मीदारी नही मिटती।
तबाह हो रहे हररोज पर तबाही नहीं दिखती।
बेतुकी बातों की ये हरपल करते तुकबंदी,
अंधभक्ति की कोई अब दवाई नहीं बिकती।
नही बचा रोज़गार पर बेरोज़गारी नही दिखती।
नहीं जलता घर चुल्हा पर लाचारी नही दिखती।
तीनो पहर करते हैं साहब का जमकर गुणगान,
अंधभक्ति की कोई अब दवाई नहीं बिकती।
चंद घरानो के हांथ देश की संपत्ति है सिमटती।
भावी पीढ़ी के मस्तिष्क में कट्टरता है पनपती।
पर असल मुद्दों की नही करते कभी ये बात,
अंधभक्ति की कोई अब दवाई नहीं बिकती।
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से करते ये पढ़ाई।
सोशल मीडिया से ढेरो ज्ञान है जुटाई।
झूठे तथ्यों से लगाते बकलोली का मजमा,
अंधभक्ति की कोई अब दवाई नहीं बिकती।
मंगलवार, 9 अप्रैल 2024
हमारा "रवि" रोशनी फैलाता है।
अपनेपन का एहसास देता है,
हर मुश्किल में साथ देता है।
धीर गंभीर सा हर बात सुनता,
मन ही मन है समाधान बुनता।
सलाह में भी सम्मान देता है,
विचार हमेशा महान देता है।
हम सब दोस्तों की शान है ये,
दोस्ती की मजबूत पहचान है ये।
हर सुबह आशा किरण लाता है,
हमारा "रवि" रोशनी फैलाता है।
है दुआ की सफलता अपार मिले,
ताउम्र इसे खुशियां बेशुमार मिले।
शनिवार, 30 मार्च 2024
उनके चेहरे का खिलना कुछ तो कहता है : प्रदीप चौहान
आंखों को हमारे वो पढ़ नहीं पाते
ये होंठ उनसे कुछ कह नहीं पाते
दिल का हाल बयां कैसे करें यारों
उनसे फासला अब सह नहीं पाते।
इंतजार में उनके यह दिल तड़पता है।
दीदार को उनके यह दिल तरसता है l
ऐसा क्या करें कि वह हमारे हो जाए,
इकरार को उनके यह दिल तरसता है।
पड़ोसियों से अड़चने तेज हो जाती हैं
गलियों में धड़कनें तेज हो जाती हैं
मिलना उनसे इस कदर हुआ है मुश्किल
दर उनके गर भटके तो जेल हो जाती है।
यह कहानी अब अधूरी ही रह जाएगी
यह तड़प अब गैरजरूरी ही रह जाएगी
ऐसा हो कि बस इक बार मिलना हो जाए
हीर रांझा के बिना ही अब मर जाएगी।
उनसे नजरों का मिलना कुछ तो कहता है
उनके लबों का मचलना कुछ तो कहता है
हमारी चाहत का लगता असर है प्रदीप्त
उनके चेहरे का खिलना कुछ तो कहता है।
प्रदीप चौहान
किताबों से : प्रदीप चौहान
जिंदगी के कुछ पन्ने जो रह गए बिन पढ़े,
सीखो लेखन का हर सलीक़ा, किताबों से।
दबी है कुछ कर गुजरने की आग गर सीने में,
जानों कथन का नया तरीका, किताबों से।
गरीबी की मार कराता है दर-दर अपमान
सीखो हुनर से निर्धनता मिटाना, किताबों से।
गैर बराबरी ने उपजे हैं बड़ी समस्याएं देश में
सीखो बराबरी का दीप जलाना, किताबों से।
मोबाइल की अति बनी अभिशाप मनुष्य की,
बदल दो भटकाव का ये जंजाल, किताबों से।
सोशल मीडिया करता भस्म समय कीमती,
रोको इस भस्मासुर का परचम लहराना, किताबों से
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ज्ञान कराता अपमान
सीखो तथ्यों से समझाना, किताबों से।
गोदी मीडिया का दुष:प्रचार करता प्रहार
सीखो स्वयं को निरंतर बचाना, किताबों से।
जाति, धर्म, मजहब के नशे में न हों तुम लीन
सीखो अंधभक्ति का ज़हर हटाना, किताबों से।
उच्च नीच की असमानता आज बन बैठा है नासूर
सीखो इस बीमारी को जड़ से मिटाना, किताबों से।
असहमति ने जन्मे हैं हर नए अविष्कार देश में
सीखो नाखुश सुरों को एकसाथ लाना, किताबों से।
मनुष्य की जिज्ञाशा ने बनाया अन्य जीवों से श्रेष्ठ
सीखो मनुष्यता को ऊपर उठाना, किताबों से।
ज्ञान है इक आधार जो बदल दे हर हालात,
करो अर्जित इल्म का खज़ाना, किताबों से।
जागो, पढ़ो, बढ़ो, करो हांसिल हर मंज़िल,
लिखो सफलता का अफसाना, किताबों से।
प्रदीप चौहान
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