शुक्रवार, 24 मई 2024
चमक
स्वयं की चमक बनाने के लिए तुझे जलना होगा
अड़चने लाख आएं पर स्वयं ही संभलना होगा।
बुरे हालात पर तेरे हंसेंगे रोज कई जमाने वाले,
पर शिखर पर पहुंचने को तुझे चलते रहना होगा।
खामोशी
कड़वी बातें उसकी त्रिशूल सी चुभती हैं,
हरकतें उसकी अब शूल सी चुभती हैं।
क्यों न दिया उसकी भाषा मे ही जवाब,
खामोशी अपनी बड़ी भूल सी चुभती है।
अंधभक्ति की कोई अब दवाई नहीं बिकती : प्रदीप चौहान
नहीं पैरों तले जमीं पर ज़मीदारी नही मिटती।
तबाह हो रहे हररोज पर तबाही नहीं दिखती।
बेतुकी बातों की ये हरपल करते तुकबंदी,
अंधभक्ति की कोई अब दवाई नहीं बिकती।
नही बचा रोज़गार पर बेरोज़गारी नही दिखती।
नहीं जलता घर चुल्हा पर लाचारी नही दिखती।
तीनो पहर करते हैं साहब का जमकर गुणगान,
अंधभक्ति की कोई अब दवाई नहीं बिकती।
चंद घरानो के हांथ देश की संपत्ति है सिमटती।
भावी पीढ़ी के मस्तिष्क में कट्टरता है पनपती।
पर असल मुद्दों की नही करते कभी ये बात,
अंधभक्ति की कोई अब दवाई नहीं बिकती।
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से करते ये पढ़ाई।
सोशल मीडिया से ढेरो ज्ञान है जुटाई।
झूठे तथ्यों से लगाते बकलोली का मजमा,
अंधभक्ति की कोई अब दवाई नहीं बिकती।
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