मंगलवार, 19 फ़रवरी 2019

जिस राह पर हम कभी मिला करते थे : रमेश आनन्दानी

स्वरचित ग़ज़ल

जिस राह पर हम कभी मिला करते थे
वहां के मंज़र अब भी वैसे ही खड़े हैं
तुम तो मुस्कुरा कर आगे मुड़ गए थे
हम अब भी वक्त को थामे वहीँ खड़े हैं |

सोचते हैं कभी शायद कोई बहार आएगी
जो तेरी साँसों से मंज़र को महकाएगी
कभी तो कोई हवा इस मोड़ की तरफ आएगी
जो तेरे शहर की खुशनुमा खबर लाएगी |

कभी तो यहाँ के गुलशन महका करते थे
अब तो वे भी तुम्हारी नज़रों का इंतज़ार करते हैं
हमारी खातिर तो तुमने कभी इधर का रुख किया नहीं
इन गुलों पर ही करम करो जो तबसे राह तकते हैं .

झूमकर जिन कदमों के साथ कभी हम चले थे
यह राहें अब भी उन कदमों को याद करती हैं
कभी फिर लौटकर आओगे इन फ़िज़ाओं में
इस उम्मीद से हर लम्हा, हर शय याद करती है |

याद करो उन रिमझिम बरसातों को
जिन में अक्सर हम भीगा करते थे
वो बरसातें हर बार सावन में
झूम - झूमकर तुम्हें याद करती हैं

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Kavi Pradeep Chauhan