रविवार, 18 अगस्त 2019

वो फिर दोबारा कहाँ मिलेंगे : गुलशन ठाकुर


जो बीत गए जीवन के पल
वो फिर दोबारा कहाँ मिलेंगे

इस सावन की हरियाली में
हम सब मस्ती में झूम रहे हैं
हमें नहीं भूलना उन लम्हों को
जिस कारण आज जीवन में 
हम खुशियों का दामन चूम रहे हैं
जहाँ ओस की बूँदें लगे थी मोती
वहाँ भँवरों के गुलशन अब कहाँ खिलेंगे
जो बीत गए जीवन के पल
वो फिर दोबारा कहाँ मिलेंगे

वो मधुर सुगंधित मीठा बचपन 
जब खेलते थे गुड्डे गुड़ियों संग
वो छुट्टी में नानी घर जाना
आमों की बगिया में उधम मचाना
जहाँ होती सब गलती माफ
वो स्नेह के आँचल अब कहाँ मिलेंगे
जो बीत गए जीवन के पल 
वो फिर दोबारा कहाँ मिलेंगे

वो कंधे पे बस्ता टाँगे जाना
फिर एक दूजे को खूब चिढ़ाना
वो प्रेम की रोटी और अंचार
था जिनके बिन जीवन बेकार
फिर जून की तपती धूप में
हम कोयल की कूँ कूँ कहाँ सुनेंगे
जो बीत गए जीवन के पल 
वो फिर दोबारा कहाँ मिलेंगे

थी चौङी छाती सिंह की चाल
जब चार यार मिल करे धमाल
तब अल्हड़ मस्त जवानी थी
जीवन के हर दौर में 
बस अपनी ही मनमानी थी
वो मौसम प्रेम कहानी के 
अब हमें ओ यारा कहाँ दिखेंगे
जो बीत गए जीवन के पल
वो फिर दोबारा कहाँ मिलेंगे

कोई लौटा दो मेरे वो दिन
वो मस्ती बचपन की वो प्रेम के दिन
जो हो गई पूरी अपनी आस
हम तितली सा फिर उड़ चलेंगे
जो बीत गए जीवन के पल
वो फिर दोबारा कहाँ मिलेंगे
Gulshan Thakur

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Kavi Pradeep Chauhan