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सोमवार, 9 मार्च 2020

वो हर लम्हा याद आता है : प्रदीप चौहान


बंद करें जब पलकों को अपने,
चेहरा उसी का नज़र आता है।
ज़ुल्फ़ों की तंग गलियों में,
बार बार ये मन खोता है। 
वो हर लम्हा याद आता है,
वो... याद आता है।

हवा का हर झोंका,
ख़ुश्बू--एहसास कराता है।
आहट बन अरदास उसकी,
यादों के आग़ोश में ले जाता है।
वो हर लम्हा याद आता है,
वो... याद आता है।

बात बात पे उसका लड़ना,
बिन बात यूँ ही झगड़ना।
प्यार के हर लफ़्ज़ को,
टकटकी नज़रों से समझना।
वो हर लम्हा याद आता है,
वो... याद आता है।

बिस्तर का वो कोना,
बेसुध हो कर उसका सोना।
बाज़ूओं को मेरे तकिया बना,
मदहोशि के आग़ोश में खोना
वो हर लम्हा याद आता है,
वो... याद आता है।

Kavi Pradeep Chauhan