Poetry लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Poetry लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 11 मार्च 2020

हे मन तु क्यों भटकता है? : प्रदीप चौहान

हे मन तु क्यों भटकता है?

जागे है मन पर बोझ लिये,
बन पिंजरे का पंक्षि तु जिये।
क्यों काटे है पंख उड़ान के,
हौसलों को बेड़ियों से बाँध के।
हे मन तु क्यों भटकता है?
ज़िंदा रहकर क्यों मरता है?

तेरी ये लड़ाई तो ख़ुद से है,
तु मर रहा अपनों के सुध से है।
थामें रिश्ते जो शमशान भए,
जब टूट सब अरमान गए।
हे मन तु क्यों भटकता है?
ज़िंदा रहकर क्यों मरता है?

रहे दूर तो हरपल तड़पे है,
रहे पास तो हरदम झड़पे है।
क्यों अकेले में भरता आहें,
तकती मंज़िल को तेरी राहें।
हे मन तु क्यों भटकता है?
ज़िंदा रहकर क्यों मरता है?

सपनें अब चकनाचुर हैं,
टूट गए सब ग़ुरूर हैं।
किसी का तु क्या साथ देगा,
जब ख़ुद से मिलों दूर है।
हे मन तु क्यों भटकता है?
ज़िंदा रहकर क्यों मरता है?

प्रेम तुझे नाख़ुश करे,
पैसा ना संतुष्ट करे।
ये कैसी भूख लग आइ,
हैवानियत तुझमे दुरुस्त करे।
हे मन तु क्यों भटकता है?
ज़िंदा रहकर क्यों मरता है?

Kavi Pradeep Chauhan