बुधवार, 21 अगस्त 2019

मेरी बिटिया : प्रदीप चौहान

याद है वो कठिन समय जब
पापा या मम्मी का विकल्प था आया
पापा संग कोई नहीं रहेगा
सुन बिटिया ने मम्मी से हाथ छुड़ाया
लिपट के बोली पापा मैं आपके साथ रहूंगा
नन्ही की समझदारी देख आंख था भर आया।

उस रात बेटी नही सो पायी थी
चिंतित चेहरा, नम आंखें,
लबों पे न मुस्कान लाई थी
लिपट-लिपट कर चेहरा देखती
नींद न आने की व्यथा सुनाई थी।

"क्या मम्मी कभी नही आएगी?"
थर्राते लबों पे जब ये प्रश्न वो लाई थी
दिल पसीज गया आंखें भर आयी
लगाया गले प्यार से समझाया
बहला फुसला उसको था सुलाया।

उस दिन था बात ये समझ आया
बच्चों के बेहतर परवरिश के लिए
माता -पिता का साथ सबसे जरूरी
बेटी ने ये एहसास दिलाया।

हर माँ-पिता को कसम ये खाना होगा
छोटे छोटे झगड़ो को मिलकर सुलझाना होगा
बच्चों के भविष्य पर न पड़े कोई गलत प्रभाव
बेहतर खुशहाल परवरिश का माहौल बनाना होगा।


रविवार, 18 अगस्त 2019

वो फिर दोबारा कहाँ मिलेंगे : गुलशन ठाकुर


जो बीत गए जीवन के पल
वो फिर दोबारा कहाँ मिलेंगे

इस सावन की हरियाली में
हम सब मस्ती में झूम रहे हैं
हमें नहीं भूलना उन लम्हों को
जिस कारण आज जीवन में 
हम खुशियों का दामन चूम रहे हैं
जहाँ ओस की बूँदें लगे थी मोती
वहाँ भँवरों के गुलशन अब कहाँ खिलेंगे
जो बीत गए जीवन के पल
वो फिर दोबारा कहाँ मिलेंगे

वो मधुर सुगंधित मीठा बचपन 
जब खेलते थे गुड्डे गुड़ियों संग
वो छुट्टी में नानी घर जाना
आमों की बगिया में उधम मचाना
जहाँ होती सब गलती माफ
वो स्नेह के आँचल अब कहाँ मिलेंगे
जो बीत गए जीवन के पल 
वो फिर दोबारा कहाँ मिलेंगे

वो कंधे पे बस्ता टाँगे जाना
फिर एक दूजे को खूब चिढ़ाना
वो प्रेम की रोटी और अंचार
था जिनके बिन जीवन बेकार
फिर जून की तपती धूप में
हम कोयल की कूँ कूँ कहाँ सुनेंगे
जो बीत गए जीवन के पल 
वो फिर दोबारा कहाँ मिलेंगे

थी चौङी छाती सिंह की चाल
जब चार यार मिल करे धमाल
तब अल्हड़ मस्त जवानी थी
जीवन के हर दौर में 
बस अपनी ही मनमानी थी
वो मौसम प्रेम कहानी के 
अब हमें ओ यारा कहाँ दिखेंगे
जो बीत गए जीवन के पल
वो फिर दोबारा कहाँ मिलेंगे

कोई लौटा दो मेरे वो दिन
वो मस्ती बचपन की वो प्रेम के दिन
जो हो गई पूरी अपनी आस
हम तितली सा फिर उड़ चलेंगे
जो बीत गए जीवन के पल
वो फिर दोबारा कहाँ मिलेंगे
Gulshan Thakur

तब क्या करोगें ? : दिनेश


देश कि वर्तमान परिस्थिती पर एक सवाल

तब क्या करोगें ?

बंद फैक्टरीयां, बिक रहे कारखाने कई हजार, 
जब नौजवां दर-दर भटके बेरोजगार, तब क्या करोगें ?
जल, जंगल, जमीन लूट गयी गरीब की, एक तरफ सत्ता और दौलत बेसूमार, तब क्या करोगें ?
हैं आधुनिक हथियार और हो मंगल का सरताज,
फिर भी जनता मरती सूखा और बाढ़, तब क्या करोगें ?
धर्म और मजहब मे उल्झा रहा आवाम,
सियासत का हैं ये बहुत पूराना व्यापार, तब क्या करोगें ?
लग जाती हैं बेडी़यां, सिल दी जाती हैं ज़बान,
जब बिगडते हालात पर पूंछे कोइ सवाल, तब क्या करोगें ?
*-दिनेश*






रविवार, 11 अगस्त 2019

एक प्रेम कहानी लिखें फिर कश्मीर में : गुलशन ठाकुर


इन वादियों की सुर्ख हवा में
देखो बस्ता कोई नूर है
जिसे धरती का हम स्वर्ग है कहते
क्यों सबकी पहुँच से ये दूर है
सोचना क्या है होगा ही वो
जो लिखा है तकदीर में
आओ मिलकर एक प्रेम कहानी
हम लिखें फिर कशमीर में 

क्यों अमन यहाँ सब लूट रहे हैं
खुद में लड़कर ही क्यों भला
हम टुकड़ों में यूँ टूट रहे हैं
कहाँ गए वो मौसम रूमानी
जहां बहता था झीलों में पानी
हर राँझा खोया रहता था
जहाँ अपनी प्यारी सी हीर में
आओ मिलकर एक प्रेम कहानी
हम लिखें फिर कश्मीर में

लो हुई खत्म धारा 370
फीर एक नया कश्मीर बनाएं
जहाँ होते थे हमले आतंकी
वहाँ प्रगति का हम दीप जलायें
अब नही चलेगा पत्थर कोई
झूठे जिहाद की भीड़ में
आओ मिलकर एक प्रेम कहानी
हम लिखें फिर कश्मीर में

सालों से Aदेखा जो सपना
आज हुआ है पूरा अपना
है आज दिवाली और ईद भी
किस्मत से आया ये शुभ दिन है
ऐसे ही नहीं कहती दुनिया
मोदी है तो मुमकिन है
है मिला कुशल प्रशासक हमको
इस मोदी से फकीर में
आओ मिलकर एक प्रेम कहानी
हम लिखें फिर कश्मीर में

Kavi Pradeep Chauhan