शनिवार, 13 मार्च 2021

तेरे माथे पर वो छोटी सी बिंदी : अमित सिंह

 


तेरे माथे पर वो छोटी सी बिंदी मुझे अच्छी लगती है 

तू हस्ती रहा कर हस्ती मुस्कुराती मुझे अच्छी लगती है 


तेरी हर एक अदा अदा कि सादगी मुझे अच्छी लगती है

तेरे होठों की हंसी आंखों की शरारत मुझे अच्छी लगती है 


नजरे मिलाती नजरे चुराती नजरों की आवारगी मुझे अच्छी लगती है

तेरी नजरो की मेरी नजरो से वो हर मुलाकात मुझे अच्छी लगती है 


जीन्स से ज्यादा तु सूट सलवार में मुझे अच्छी लगती है

तेरे हाथों मे कंगन की खनखनाहट मुझे अच्छी लगती है 


तेरे कानों की बालियां नाक की नथनी मुझे अच्छी लगती है

तू मुझे एक बात पर नहीं हर बात पर अच्छी लगती है 


सावन कि बरसात मे तु भीगती मुझे अच्छी लगती हे

सर्दी कि धुप में बालों को संवारती तु मुझे अच्छी लगती है 


इठलाती बलखाती इतराती तु मुझे अच्छी लगती है

तेरे होठों की हंसी चहरे पर रोनक मुझे अच्छी लगती है 


तेरे माथे पर वो छोटी सी बिंदी मुझे अच्छी लगती है 

तू हस्ती रहा कर हस्ती मुस्कुराती मुझे अच्छी लगती है,

गुरुवार, 11 मार्च 2021

जीवित रहना जंग है : प्रदीप चौहान

Kavi Pradeep Chauhan


अर्थव्यवस्था मंद है

महँगाई भई प्रचंड है

ग़रीब झेलता दंड है

जीवित रहना जंग है।


जेब सबके तंग हैं

कमाई हुई बंद है

ज़िंदगी कटी पतंग है

जीवित रहना जंग है।


कुछ घराने दबंग हैं

हर सत्ता उनके संग है

बेशुमार दौलती रंग है

जीवित रहना जंग है।


शासन सत्ता ठग है

बेइमानी बसा रग है

लूट-खसोट का जग है

जीवित रहना जंग है।


भावी पीढ़ी मलँग हैं

सुलगते नफ़रती उमंग हैं

बढ़ते धार्मिक उदंड हैं

जीवित रहना जंग है।


बेरोज़गारी भुज़ंग है

बेकारी करे अपंग है

हर जवाँ हुनर बेरंग है

जीवित रहना जंग है।


मज़दूर किसान तंग है

आन्दोलन पर बैठे संग है

कारपोरेट गोद में संघ है

जीवित रहना जंग है।


बुधवार, 10 मार्च 2021

भार : प्रदीप चौहान

 हद से ज्यादा भार लेकर दौड़ा नहीं जाता 

साथ सारा संसार लेकर दौड़ा नहीं जाता ।

दौड़ो अकेले अगर पानी है रफ़्तार

जिम्मेदारियों का पहाड़ लेकर दौड़ा नहीं जाता।



बदलाव : प्रदीप चौहान

 अकेले चल  इंसान बदल जाते हैं

ले साथ चलें  तो बदलाव लाते हैं।

उस  सफलता  के  मायने  ही  क्या

जिसे पाते ही अपने पीछे छूट जाते हैं।



Kavi Pradeep Chauhan