शनिवार, 27 अक्तूबर 2018

प्रगतिशील इश्क़ : प्रदीप चौहान

प्रगतिशील विचारों से ताल्लुक़ रखने वाले शादीशुदा जोड़े के दैनिक जीवन मे परवान चढ़ते इश्क़ को विभिन्न रूपों व विभिन्न हालातों में व्यक्त करने की कोशिश की गई है।

शादी के बाद की
वो पहली डेट
कई जोड़ो के बाद लगा 
मनमाफिक सेट
गांव की कली 
शहरी रंगों में रंगी थी
दिल्ली दर्शन अभिलाषी 
बन ठन कर चली थी
किया छल ले चला था देने धरना
कराया रूबरू क्या होता जनाक्रोश
'निर्भया कांड' से आहत
आंदोलनकारियों का जोश
संघर्षित हुजूम में
पग-पग संभलना
लिए हाँथों में हांथ
तेरे साथ-साथ चलना
धक्कों के बहाव में
तुझे आग़ोश में भरना
तेरा ध्यान रखना
ये ही तो है मेरा...
प्रगतिशील इश्क़।

हुई आक्रोशित थी तुम
सुन मिर्मम अत्याचार
पुरूष प्रधान समाज का 
देख उदंड चेहरा बारम्बार
आयी आंखों में नमी तेरे
थे लबों पे कई सवाल
कर हाँथ खड़े 
मेरे साथ खड़े
भरी थी तूमने भी हुंकार
गूंजी थी फ़िजा में
अन्याय के खिलाफ हर आवाज़
तेरे माथे की झूरियों को समझना
तेरे चेहरे की कुलकारियों को सहेजना
पल दर पल नजरों का मिलना, 
नयनों ही नयनों में 
सबकुछ कहना
ये ही तो है मेरा...
प्रगतिशील इश्क़।

चांदनी रात में भोर तक जगना
चर्चाओं के दौर पे दौर का चलना
तथ्यांत्मक प्रहारों से 
तेरा मुझसे झगड़ना
तर्क-वितर्क की सवारी कर
तेरा मुझपर चढ़ना
नासमझी को भी तेरे, 
समझदारी में बदलना
शिद्दत से तुझे सुनना
तेरी आंखों को तकना
तेरी लबों पे भटकना
ये ही तो है मेरा...
प्रगतिशील इश्क़।

नही मलाल की न दे पाया 
तुझे बंगला या गाड़ी
नही किया तूने कभी
सफ़ारी की सवारी 
हर कदम किया कोशिश
की बने तू एक सबल नारी
कुंठिक मर्यादावों को पटक
दिया बराबरी का हक़
जीवन के उतार चढाव में 
तेरे संग-संग चलना
हर पल-हर कदम 
तेरे ही रंग में रंगना
ये ही तो है मेरा...
प्रगतिशील इश्क़।

सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

पढ़ाई करूँ या मैं पानी भरूँ ? : प्रदीप चौहान

दिल्ली की सत्ता पे काबिज़ सरकार के द्वारा घर घर पीने का पानी देने में असफलता के कारण हजारों बच्चों की पढ़ाई व स्कूल तक छूट जाते हैं। उन बच्चों के कुछ प्रश्नों के द्वारा स्लम कॉलोनियों में बच्चों के शिक्षा पर पड़ रहे प्रभाव को इस कविता के जरिये बयां करने की कोशिश की गई है।
Water Problems in Slum

पिता पर पेट की ज़िम्मेदारी
माँ पर भविष्य की ठेकेदारी
रुक भरें पानी तो बेरोज़गारी की मार
स्कूलों से ऊंचा तेरे पानी का ताड़
बता ये दिल्ली के सुल्तान
पढ़ाई करूँ या मैं पानी भरूँ।

कहीं पानी की भरमार
तो कहीं सूखे से हाहाकार
दोहरे बर्ताव से विलुप्त मेरी शिक्षा
क्या मेरी बस्ती है मुल्तान
बता ये दिल्ली के सुल्तान
पढ़ाई करूँ या मैं पानी भरूँ।

सुना है आंदोलन से तू आया
विकास का जिन था तुझमे समाया
दियेे दिल्ली की सत्ता में तुझे सम्मान
पर लाकर टैंकर की गंदी राजनीति
कर रहा आम जनता का अपमान
बता ये दिल्ली के सुल्तान
पढ़ाई करूँ या मैं पानी भरूँ।

किस काम के तेरे गगनचुम्बी स्कूली ताज
मैं कल को सवारूँ या बचाऊं मेरा आज
दिए प्रलोभन मुफ्त होगा लिटर बीसों हजार
मेरी बस्तिया झेल रहीं बून्द बून्द की मार
बता ये दिल्ली के सुल्तान
पढ़ाई करूँ या मैं पानी भरूँ।

शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2018

अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी। : प्रदीप चौहान


क्षेत्रिय घेराव बना बिहार की मजबूरी
समुन्द्र तट न होना है बड़ी कमजोरी
नही अंतराष्टीय जान पहचान
न कोई व्यापारिक आदान प्रदान
सह रहे रोजी रोटी की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

एक हिस्से में बाढ़ का अत्याचार
दूजा हिस्सा झेलता सुखे की मार
छोड़ना पड़ जाता लाखों को घर बार
पलायन ही बचता जीवन आधार
सह रहे कुदरत की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

बिजली, सड़क की जर्जर अवस्था
सरकार न कर पायी निवेशकों की व्यवस्था
शुगर मिल व उर्वरक भी हुए बन्द
विकास की गति सबसे ज्यादा है मंद
सह रहे राजकीय विफलता की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

सियासी फायदों से राज्य हुआ विखंड
खनन-खनिज सब गए झारखंड
न टाटा रहा,न हांथ रहा बोकारो शहर
न बचा उद्योग,गिरा रोजी रोटी पे कहर
सह रहे सियासी बंटवारे की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

भाड़ा समीकरण निति, ऐसी कूटनीति
माल ढुलाई में सरकारी छुट की राजनीति
लूट गया बिहार का कच्चा माल
महाराष्ट्र, गुजरात भये मालामाल
सह रहे प्रांतीय शोषण की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

आये ऐसे भ्रस्ट नेता, चारा तक को लपेटा
न शुरू किया कोई धंधा, न बड़ा व्यापार
जातिय राजनीति से राज्य का किया बंटाधार
विकास के दौड़ में बिहार हुआ असफल हरबार 
सह रहे भ्रस्टाचार की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

प्रदीप चौहान

सोमवार, 8 अक्तूबर 2018

अराजकता बढ़ाया जा रहा : प्रदीप चौहान

बुद्धिजीवियों को धमकाया जा रहा
सामाजिक कायकर्ताओं को डराया जा रहा
कि चलता रहे खास तबके का राज़
कि न उठाये कोई दबे कुचलों की आवाज़
फर्जी आरोपों में करके गिरफ्तारियां
अराजकता बढ़ाया जा रहा।

धार्मिक भावनाओं को उकसाया जा रहा
"एक तबका" निशाना बनाया जा रहा
भीड़ को देकर सनकी अभिमान
गुनाहगारों की न करता कोई पहचान
सियासी मंसूबों की पूर्ति के लिए
अराजकता बढ़ाया जा रहा।

"बेरोजगारी" मुद्दे से भटकाया जा रहा
"शिक्षा में असफलता" से ध्यान हटाया जा रहा
कि न कर पाए कोई असल मुद्दों पर चर्चा
किया जा रहा मोब लींन्चिंग खबरों पर खर्चा
पुलिस पर लगा पाबंदियां अपार
अराजकता बढ़ाया जा रहा।

अमीरों को फायदा पहुंचाया जा रहा
हर क्षेत्र, निजी हांथों में लुटाया जा रहा
राज्य की हो रही कठपुतली पहचान
कुछ घरानों के हांथ है देश की कमान
कानून को कर कमजोर व लाचार
अराजकता बढ़ाया जा रहा।

प्रदीप चौहान

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

घर घर पानी अब लेके रहेंगे : प्रदीप चौहान

Water problem in slum
दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में पीने के पानी की समस्या वहाँ की सबसे बड़ी समस्या है। यहां युवाओं का झुंड आंदोलित है इस मांग को लेकर की उन्हें भी पीने का पानी मिले, भीख की तरह न मिलकर सम्मान पूर्वक मिले। आंदोलन से सबको जोड़ने, जागरूक करने और एकजुट करने के आहवान के रूप में गाया जाने वाला गीत रूपी कविता।

लड़ेंगे, जीतेंगे, डटे रहेंगे
घर घर पानी अब लेके रहेंगे

अब कोई माँ नहीं टंकी ढोएगी
अब कोई बहन नही टेंकर पे रोयेगी

आओ रे दोस्तो, आओ रे भाई
घर घर पानी की मांग है लड़ाई

अब किसी पिता की जाए ना नौकरी
अब किसी भाई की छुटे ना पढ़ाई

हक और सम्मान की है ये लड़ाई
घर घर पानी की मांग है लड़ाई

अब कोई जवां नही ढोएगा झंडा
अब कोई दोस्त नहीं खायेगा डंडा

जो मेरा हाल है, वो ही तेरा रे भाई
भूल आपसी मतभेद, चलो करो रे चढ़ाई

आओ रे आओ, जमीर को बचाओ
आओ रे आओ, सम्मान ना गँवाओ

माताओं के ये सम्मान की लड़ाई
बहनों के राखी के कर्ज की चुकाई

पिता के पगड़ी की लाज हम बचाएं
नासूर भये हालातों में बदलाव हम लाएं

आओ रे दोस्तों आओ रे भाई
घर घर पानी की मांग है लड़ाई

लड़ेंगे, जीतेंगे, डटे रहेंगे
घर घर पानी अब लेके रहेंगे

प्रदीप चौहान

Kavi Pradeep Chauhan