बच्चे नौजवां अब खेलते सट्टा
कहीं छलकाते ज़ाम कहीं सुट्टा
नई नस्ल हुई बेपरवाह सब चुप हैं,
भावी पीढ़ी हुई तबाह सब चुप हैं।
अंधे अभिभावकों की ये कौम है,
गुनाहगार वो हैं जो आज मौन हैं।
अत्याचार झेलते कर आंखें बंद
हर एक मार झेलते बन अपंग।
काम के घंटे बढ रहे सब चुप हैं,
तनख्वाहें घट रहीं सब चुप हैं।
मृत करदातावों की ये कौम है,
गुनाहगार वो हैं जो आज मौन हैं।
निजीकरण की पड़ रही मार,
देश की संपत्ति बेच रही सरकार।
ऐरपोर्टस बैंक बेचे सब चुप हैं,
रेलवे हाइवे बेचा सब चुप हैं।
बेजुबां नस्ल बुझदिल ये कौम है,
गुनाहगार वो हैं जो आज मौन हैं।
ना थिरकते किसी की बारात पर
ना सिसकते किसी वारदात पर।
देख अन्याय ये करते आंखें बंद
ज़मीर की आवाज़ पड़ रही मंद।
शरीफ मुखौटों में स्वार्थी ये कौम है,
गुनाहगार वो हैं जो आज मौन हैं।
बहुत खूब सर
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