गुरुवार, 10 नवंबर 2022

मेरे दोस्त हमारे रिश्ते को आयाम देते थे: प्रदीप चौहान


तुम्हारी गली जाने का हर काम लेते थे,
तेज लफ़्ज़ों में दर तेरे मेरा नाम लेते थे।
बात बात पर कराते थे तुम्हारा एहसास,
मेरे दोस्त हमारे रिश्ते को पहचान देते थे।

तुम्हारे घर को न ताके कोई पैग़ाम देते थे,
उस गली से न गुजरे कोई फ़रमान देते थे।
तुम्हें तकने वाले से झगड़ना थी आम बात,
मेरे दोस्त हमारे रिश्ते को पहचान देते थे।

तुम्हारे आने का हर दिन पयाम देते थे,
हमें मिलाने का हर नया मुकाम देते थे।
साम दाम दंड भेद अपनाते हर हथकंडे,
मेरे दोस्त हमारे रिश्ते को पहचान देते थे।

तुम भई पराई पर दोस्त हरपल अपने थे
वो दोस्त थे, दोस्ती थी, जिंदा हर सपने थे
तुम्हारे चले जाने पर न टूटने देते थे मुझे
मेरे दोस्त हमारे रिश्ते को पहचान देते थे।

बुधवार, 2 नवंबर 2022

आओ जीवन में फिर नई आशा भरें : प्रदीप चौहान


कुछ तुम कुछ हम, दूर निराशा करें,
चलो मिलकर खत्म हर तमाशा करें।
मेरी गलतियां तुम भूलो तुम्हारी मैं,
आओ जीवन में फिर नई आशा भरें।

दूर करें गलतफहमियां एक दूजे की, 
खत्म करें सब कमियां एक दूजे की।
चलो जिवन की हर राह आसां करें,
आओ जीवन में फिर नई आशा भरें।

चलो फिर एक दूजे का फ़िक्र करें,
हर बात पर एक दूजे का ज़िक्र करें।
पूर्वाग्रहों को हमेशा के लिए भुलाकर
आओ जीवन में फिर नई आशा भरें।

लड़कर हम तुम हर भड़ास निकालें,
रख कंधे पर सर हर आस निकालें।
कर मंथन चिंतन दूर हर निराशा करें
आओ जीवन में फिर नई आशा भरें।


शनिवार, 22 अक्तूबर 2022

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रविवार, 5 जून 2022

आसां नही है बड़ा भाई होना : प्रदीप चौहान

पिता की उम्मीदें जानता हूं,
मां की आशाएं पहचानता हूं।
भाइयों की विचारधारायें हैं,
पारिवारिक कुछ मर्यादाएं हैं
सब उम्मीदों का सामंजस्य ढोना,
आसां नही है बड़ा भाई होना।

उम्र के जिस पड़ाव पर तू है,
जीवन के जिस चढ़ाव पर तु है।
समझ की नादानी बेड़ियां ना बनें,
पहचान की कोई भेड़ियाँ ना बने।
स्वयं के इतिहास से शिक्षा देना,
आसां नही है बड़ा भाई होना।

'निर्भया' है देखा मैंने
'माधुरी' भी देखी मैंने।
मनचलों की बड़ी तादाद है 
शोषकों की बड़ी ज़मात है।
आंख कान हरदम खुला होना,
आसां नही है बड़ा भाई होना।

मंगलवार, 3 मई 2022

इस्तेमाल : प्रदीप चौहान

हर कोई खड़ा अपना काम करवाने के लिए 
कर इस्तेमाल स्वयं ऊपर चढ़ जाने के लिए।

हर चेहरे के ऊपर एक मुखौटा लगा है 
अपनी असल पहचान छुपाने के लिए।

हर इंसान का इस्तेमाल किया जाता है 
खुद की बनाई मंज़िल को पाने के लिए।

हर कदम कांटे बिछाये हैं कई लोगों ने
तुम्हे हर मुमकिन चोट पहुंचाने के लिए।

हमदर्दी अपनापन सब पाखंड हैं यहां
मीठे हथियार हैं मकसद पाने के लिए।

मीठे लफ्जों का होता है इस्तेमाल यहां
हर हाल में अपनी बात मनवाने के लिए

गिद्ध सी नज़र लिए बैठे कई लोग यहां 
मुंह का निवाला छीन ले जाने के लिए।

कुछ कर गुजर जाने वाले नहीं टिकने यहां
मगरमच्छों की मांद है पसर जाने के लिए।

बहुत सोच समझ कर कदम रखना हे प्रदीप्त
हर कदम कांटे बिछे हैं चोट पहुंचाने के लिए।

यलग़ार : प्रदीप चौहान

         
             ना बढ़ावो हाथ किसी के लिए ज्यादा 
             लोग चढ़ने का पायदान समझ लेते हैं।

              ना रहो किसी के लिए मौजूद हर पल
              मौजूदगी से लोग बेकार समझ लेते है।

             ना जिये जीवन अपनी शर्तों पर अगर  
             लोग इस्तेमाल अधिकार समझ लेते हैं।

            कर दो अपने अधिकारों की बात अगर
            शोषक अपना अपमान समझ लेते हैं।

            सोच समझ कर कदम रखना हे प्रदीप्त
           नई पहल को लोग यलग़ार समझ लेते हैं।

                               प्रदीप चौहान

Kavi Pradeep Chauhan