शनिवार, 30 मार्च 2024
उनके चेहरे का खिलना कुछ तो कहता है : प्रदीप चौहान
किताबों से : प्रदीप चौहान
गुरुवार, 11 मई 2023
ये धर्म युद्ध है: रोशन सिंह
आज यह कलयुग है!
चारो ओर फैला
धर्म युद्ध है
दो वर्गों के बीच है ये धर्म युद्ध
हां! दो वर्गों में!
एक वो जो सब बनाते हैं!
एक वो जो जो सब दबा जाते हैं!
ये कोई नया युद्ध नहीं है
ये तो सदियों से छिड़ा हुआ है!
कभी जीतते हैं हम
जो सब बनाते हैं!
हारते हैं कभी वो
जो सब लूटते हैं
वो हारे हैं
कई बार
और फिर हारेंगे 17 की तरह
और हम 1फिर जीतेंगे 17 की तरह
45 की तरह,
क्योंकि हम सब बनाते हैं!
तो सब के मालिक भी हम ही हैं
क्योंकि हम मज़दूर वर्ग हैं!
रोशन सिंह
बुधवार, 5 अप्रैल 2023
कफ़न : प्रदीप चौहान
शुक्रवार, 31 मार्च 2023
मेरे दुश्मन: प्रदीप चौहान
अब कफ़न निकलेगा: प्रदीप चौहान
गुरुवार, 9 मार्च 2023
किताबों से : प्रदीप चौहान
सोमवार, 27 फ़रवरी 2023
कर्तव्य पथ पर खड़ा ये देश का स्वाभिमान।
दीवारों पर लिखे हजारों शहीदों के नाम,
युधस्मारक ये गड़तंत्र भारत की पहचान।
अमर जवान ज्योति देती हरपल श्रधांजलि,
कर्तव्य पथ पर खड़ा ये देश का स्वाभिमान।
हे मंजिल तु मुझे मिलती क्यों नहीं : प्रदीप चौहान
कितनी खुशियों को हमने छोड़े
कितने अपनों से हमने मुंह मोड़े
पल पल मारते रहे इच्छाओं को
हर कदम तकते रहे आशाओं को
पल पल चाहा हरपल की कोशिश
हे मंजिल तु मुझे मिलती क्यों नहीं?
घर छोड़े हमने अपना गांव छोड़ा
मां की ममता भरा हर छांव छोड़ा
दोस्ती छोड़ी अपने हर दोस्त छोड़े
बन परदेसी हमने रिश्ते नाते तोड़े
पल पल चाहा हरपल की कोशिश
हे मंजिल तु मुझे मिलती क्यों नहीं?
गेहूं की सरसराती बालियां छोड़ी
धान की मखमल पेठारियाँ छोड़ी
लहलहाते हुए हमने खेत छोड़ें
छोड़ा दिया हमने बाग बगीचा।
पल पल चाहा हरपल की कोशिश
हे मंजिल तु मुझे मिलती क्यों नहीं?
लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा : प्रदीप चौहान
लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा : प्रदीप चौहान
जनतंत्र का जो पर्व है बड़ा,
चुनाव रूपी फ़रेब का है घड़ा।
बोटी बोटी का है ख़रीद फरोख,
मर अब गया तेरा अपना कोख़।
अंग अंग आइ सी यू में पड़ा,
लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा।
विधायिका बनी ग़ुलाम अमीरों की,
करती पैरवी राजनीतिक जागीरों की।
करोड़ों की छीनती ज़मीनें खुलेआम,
चंद घरानों को करती मालामाल।
अंग अंग आइ सी यू में पड़ा,
लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा।
कार्यपालिका में फैला घोर भ्रष्टाचार,
रिश्वत लेनदेन का फैला मैला व्यापार।
बिना रिश्वत बाप को बाप नहीं कहता,
हर कुर्सी पर बैठा ज़िंदा जोंक है रहता।
अंग अंग आइ सी यू में पड़ा,
लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा।
न्याय-पालिका बनी अन्याय सलीक़ा,
आमजन के शोषण दमन का तरीक़ा।
ग़रीब दबे-कुचलों को देती ये सज़ा,
अमीर संपन्नों को परोसती ये मज़ा।
अंग अंग आइ सी यू में पड़ा,
लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा।
चौथा स्तम्भ इस क़दर मरा,
चंद घरानों के तलवों में पड़ा।
भूल धर्म-ए-पत्रकारिता,
कर रहा ये चाटुकारिता।
शेष साँसों को इसने है मारा,
लोकतंत्र तेरा वज़ुद नहीं रहा।
गुरुवार, 10 नवंबर 2022
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बुधवार, 2 नवंबर 2022
आओ जीवन में फिर नई आशा भरें : प्रदीप चौहान
शनिवार, 22 अक्टूबर 2022
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