बुधवार, 2 नवंबर 2022

आओ जीवन में फिर नई आशा भरें : प्रदीप चौहान


कुछ तुम कुछ हम, दूर निराशा करें,
चलो मिलकर खत्म हर तमाशा करें।
मेरी गलतियां तुम भूलो तुम्हारी मैं,
आओ जीवन में फिर नई आशा भरें।

दूर करें गलतफहमियां एक दूजे की, 
खत्म करें सब कमियां एक दूजे की।
चलो जिवन की हर राह आसां करें,
आओ जीवन में फिर नई आशा भरें।

चलो फिर एक दूजे का फ़िक्र करें,
हर बात पर एक दूजे का ज़िक्र करें।
पूर्वाग्रहों को हमेशा के लिए भुलाकर
आओ जीवन में फिर नई आशा भरें।

लड़कर हम तुम हर भड़ास निकालें,
रख कंधे पर सर हर आस निकालें।
कर मंथन चिंतन दूर हर निराशा करें
आओ जीवन में फिर नई आशा भरें।


शनिवार, 22 अक्तूबर 2022

Pradeep Chauhan

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रविवार, 5 जून 2022

आसां नही है बड़ा भाई होना : प्रदीप चौहान

पिता की उम्मीदें जानता हूं,
मां की आशाएं पहचानता हूं।
भाइयों की विचारधारायें हैं,
पारिवारिक कुछ मर्यादाएं हैं
सब उम्मीदों का सामंजस्य ढोना,
आसां नही है बड़ा भाई होना।

उम्र के जिस पड़ाव पर तू है,
जीवन के जिस चढ़ाव पर तु है।
समझ की नादानी बेड़ियां ना बनें,
पहचान की कोई भेड़ियाँ ना बने।
स्वयं के इतिहास से शिक्षा देना,
आसां नही है बड़ा भाई होना।

'निर्भया' है देखा मैंने
'माधुरी' भी देखी मैंने।
मनचलों की बड़ी तादाद है 
शोषकों की बड़ी ज़मात है।
आंख कान हरदम खुला होना,
आसां नही है बड़ा भाई होना।

मंगलवार, 3 मई 2022

इस्तेमाल : प्रदीप चौहान

हर कोई खड़ा अपना काम करवाने के लिए 
कर इस्तेमाल स्वयं ऊपर चढ़ जाने के लिए।

हर चेहरे के ऊपर एक मुखौटा लगा है 
अपनी असल पहचान छुपाने के लिए।

हर इंसान का इस्तेमाल किया जाता है 
खुद की बनाई मंज़िल को पाने के लिए।

हर कदम कांटे बिछाये हैं कई लोगों ने
तुम्हे हर मुमकिन चोट पहुंचाने के लिए।

हमदर्दी अपनापन सब पाखंड हैं यहां
मीठे हथियार हैं मकसद पाने के लिए।

मीठे लफ्जों का होता है इस्तेमाल यहां
हर हाल में अपनी बात मनवाने के लिए

गिद्ध सी नज़र लिए बैठे कई लोग यहां 
मुंह का निवाला छीन ले जाने के लिए।

कुछ कर गुजर जाने वाले नहीं टिकने यहां
मगरमच्छों की मांद है पसर जाने के लिए।

बहुत सोच समझ कर कदम रखना हे प्रदीप्त
हर कदम कांटे बिछे हैं चोट पहुंचाने के लिए।

यलग़ार : प्रदीप चौहान

         
             ना बढ़ावो हाथ किसी के लिए ज्यादा 
             लोग चढ़ने का पायदान समझ लेते हैं।

              ना रहो किसी के लिए मौजूद हर पल
              मौजूदगी से लोग बेकार समझ लेते है।

             ना जिये जीवन अपनी शर्तों पर अगर  
             लोग इस्तेमाल अधिकार समझ लेते हैं।

            कर दो अपने अधिकारों की बात अगर
            शोषक अपना अपमान समझ लेते हैं।

            सोच समझ कर कदम रखना हे प्रदीप्त
           नई पहल को लोग यलग़ार समझ लेते हैं।

                               प्रदीप चौहान

रविवार, 21 नवंबर 2021

मेरे भाई क्यों तुम भटक गए? : प्रदीप चौहान

दिल्ली की स्लम बस्तियों में दस-दस साल के बच्चों का नशे के दलदल में जाना। छोटी उम्र में नशे का आदि होना, देखकर विचलित मन कुछ सवाल करता है..... 


क्यों जीवन में तुम भटक गए?
क्यों नशे की लत में बहक गए?
क्यों नहीं तुम्हारे कोई सपने हैं?
क्यों नहीं पास तुम्हारे अपने हैं?
क्या तुम्हारा कोई उद्देश्य नहीं?
मां-पिता का कोई उपदेश नहीं?
मेरे भाई क्यों तुम भटक गए?
क्यों नशे की लत में बहक गए?

क्यों जीवन में असमंजस है?
यह कैसी तुम्हारी संगत है?
सुख हो तो तुम नशा करते हो 
दुख हो तो तुम नशा करते हो
मेरे भाई क्यों तुम भटक गए?
क्यों नशे की लत में बहक गए?

माँ से कुछ बात क्यों नहीं करते?
पिता से वार्तालाप क्यों नहीं करते?
क्यों बहन से नहीं झगड़ते तुम?
क्यों भाइयों से नहीं लड़ते तुम?
क्यों तुम्हें पसंद एकांत है?
क्यों मन तुम्हारा अशांत है?
मेरे भाई क्यों तुम भटक गए?
क्यों नशे की लत में बहक गए?

क्यों नहीं सीखते कोई हुनर?
क्यों बर्बाद कर रहे ये उमर?
पिता के चरणों में है बहार सुनो।
माँ के आंचल में है संसार सुनो।
सुनो मंजिलें तुम्हें पुकारती।
चलो की राहें तुम्हें पुकारती।
उठो जीवन को संवारना है।
जागो हालातों को सुधारना है।
मेरे भाई क्यों तुम भटक गए?
क्यों नशे की लत में बहक गए?

नशे की गिरफ्त में बच्चे : प्रदीप चौहान

क्यों नहीं सीखते कोई हुनर?
क्यों बर्बाद कर रहे ये उमर?
फूलों में है बहार सुनो।
भवरों की हूंकार सुनो।
सुनो मंजिलें तुम्हें पुकारती।
चलो की राहें तुम्हें पुकारती।
उठो जीवन को सवारना है।
जागो हालातों को सुधारना है।
मेरे भाई क्यों तुम भटक गए?

प्रदीप चौहान

नशे की लत : प्रदीप चौहान


माँ से कुछ बात क्यों नहीं करते?
पिता से वार्तालाप नहीं करते?
क्यों बहन से नहीं झगड़ते तुम?
क्यों भाइयों से नहीं लड़ते तुम?
क्यों तुम्हें पसंद एकांत है?
क्यों मन तुम्हारा अशांत है?
मेरे भाई क्यों तुम भटक गए?
क्यों नशे की लत में बहक गए?

प्रदीप चौहान

शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

सावधान, हम हैं किसान : रोशन सिंह

सावधान, हम हैं किसान!

सीमा पर जो डटे हैं जवान 
याद रखो हमारी ही हैं संतान
ह से हल और ह से हथियार 
ये दोनों ही हैं हमारी पहचान!

खेतों में और सीमा पर होते जो कुर्बान,
तुम्हारे कारखानों, खदानों और गोदामों में,
जो अपना जीवन करते हलकान 
ये सब के सब हमारी ही संतान।

ठिठुरती पूस की रात में गेहूं को सींचती,
जेठ में कड़ाके की धूप से चाम जलती,
सीमा पर अपनी जान भी गंवाती,
खलिहानों में भूखी रहकर
तुम्हारी भूख मिटाने का सामान भी बनाती,
ये जान लो कि, 
वो भी है हमारी ही संतान।
 
हमारी संतानों के कंधों पर चढ़कर
देश बनेगा विश्व गुरु और महान,
फिर भी तुम्हारी सत्ता करती है,
हमारी संतानों का अपमान।

पूंजी और सत्ता का गठजोड़ बना
लूटते हो हमारी मेहनत का वरदान
लूटे तुमने मजदूरों के वेतन
चढ़ा है तुम्हे पूंजी के घमंड,
तभी तो तुम करते हो सबका दमन।

अब!
बर्दाश्त नहीं होगा ये अपमान!
जल्द ही छीनेंगे, तुमसे अपना सम्मान!
याद रखो, वे सब होंगे कहीं न कहीं,
मेरी ही संतान

रोशन सिंह

बुधवार, 1 सितंबर 2021

Kavi Pradeep Chauhan