षड्यंत्रों का जाल बिछाने वाले
तेरी चालों पे कभी बखेरा होगा।
तेरी मेहनत ने लोगों के घर बनाए
खून पसीनों से तूने महल सजाए
ख़ुद की छत के लिए जीवन भर तरसे
बेघर तेरा जीवन, बेघर तेरी क़िस्मत
तू बेघर ही मर जाता है
हे मज़दूर तेरी कैसी ये गाथा है।
कभी बेटा तो कभी भ्राता बन जाता हूं।
कभी पति तो कभी पिता कहलाता हूं।
कर्ज़ व फ़र्ज़ निभाते कई किरदार मेरे।
पर खुद को कभी नहीं पहचान पाता हूं।