बुधवार, 6 जनवरी 2021
चेतावनी : रोशन सिंह
रविवार, 3 जनवरी 2021
ठंड, बारिश और अख़बार वाला: प्रदीप चौहान
ठंडी हवाएँ जब चेहरे से टकराती हैं
बिन बताए आँसू खिंच ले जाती हैं
कान पे पड़े तो कान सून्न
उँगलियों पे पड़े तो उँगलियाँ सून्न
दुखिया जूते का सुराख़ डूँढ लेती
उँगलियों की गर्माहट सूंघ लेती
बर्फ़ सा जमातीं
साँसें थमातीं
कंपकंपी सौग़ात दे जाती हैं।
सर्द भोर में
बारिश भी अख़ड़े
कि जैसे बाल मुड़े और ओले पड़े
डिगाए हिम्मत और साहस से लड़ें
गिराये पत्थर की सी बूँदें
जिधर मुड़ें उधर ही ढुन्ढे
चलाये ऐसे शस्त्र
भीग़ाये सारे वस्त्र
हड्डियों को थर्राये
लहू प्रवाह को थक़ाये।
पर हम भी बड़े ढीठ हैं
पिछली कई रातों की तरह
पैरासीटामोल का संग...एक और सही
खरासते गले से जंग...एक और सही
डूबते नाँव पे जमें रहना है...
होना अख़बार वाला।
अपनी ज़िम्मेदारियां ढोते रहना है...
होना अख़बार वाला।
ठंड, बारिश में चलते रहना है...
होना अख़बार वाला।
रविवार, 4 अक्टूबर 2020
हे मेहनतकश तु कब समझेगा: प्रदीप चौहान
उपजाती में बाँटा
बाँटा अगड़े-पिछड़े और उपनाम
निजी स्वार्थ की पूर्ति को
ख़त्म किये नागरीक होने की पहचान
तेरे शोषण का है जाल
तेरी समानता पर प्रहार
मज़हब में बाँटा,
बाँटा पगड़ी, टोपी और पोशाक
धार्मिक स्वार्थों की पूर्ति को
ख़त्म किये इंसान होने की पहचान
तेरे शोषण का है जाल
तेरी इंसानियत पर प्रहार
हे मेहनतकश इंसान
तू कब समझेगा?
सपोर्ट में बाँटा
बाँटा भाषा, सोच और विचार
राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति को
किये तेरे अधिकारों का व्यापार
तेरे शोषण का है जाल
तेरी समझदारी पर प्रहार
हे मेहनतकश इंसान
तू कब समझेगा?
मैना है ये नैना है : प्रदीप चौहान
मैना है ये नैना है।
परियों से भी प्यारी है
माँ की नन्ही दुलारी है
ईश्वर की श्रेष्ठ रचना सी
मैना है ये नैना है।
गुमसूम सी ये रहती है
मन ही मन कुछ कहती है
अपनी ही मस्ती में खोई
मैना है ये नैना है।
सावन की ये रैना है
सुंदर सी मृगनैना है
धिर सी गम्भीर सी
मैना है ये नैना है।
बराबरी का हक़ हो इसको
अवसर मिलें जैसे सबको
पैरों पे खड़ी हो रही बहना है
मैना है ये नैना है।
शनिवार, 3 अक्टूबर 2020
आज भुगत रहा है मीडिया : प्रदीप चौहान
हाथरस में रिपोर्टिंग के लिए अपने प्रवेश को तरसती, आज की मेन-स्ट्रीम मीडिया की लाचारी और इसके कारणों पर चिंतन करती ये कविता।
सत्ता की ग़ुलामी का फल
सरकारों की मेज़बानी फल
चाटूकारिता का भावी असर
आज भुगत रहा है मीडिया।
क़लम के टूटे सम्मान का फल
पत्रकारों के लूटे स्वाभिमान फल
पत्रकारिता के ख़त्म पहचान का असर
आज भुगत रहा है मीडिया।
ख़बरों से किए व्यापार का फल
जनता से किए व्यवहार का फल
टीआरपी को करते दुराचार का असर
आज भुगत रहा है मीडिया।
लोकतंत्र से सीनाज़ोरी का फल
सत्ता से किए गठजोरी का फल
चौथे स्तम्भ की कमज़ोरी का असर
आज भुगत रहा है मीडिया।
जनता के विश्वास की हत्या का फल
जनतंत्र के सम्मान की हत्या का फल
ख़बरों के हिंदुस्तान की हत्या का असर
आज भुगत रहा है मीडिया।
शनिवार, 5 सितंबर 2020
मैं शिक्षालय हुँ : प्रदीप चौहान
बेटियों को पढ़ाया
बहनों को निर्भर बनाया
माताओं को सम्मान दिलाया
परिवारों में जागरुकता फैलाया
हज़ारों सपनों को साकार बनाया
और लाखों नए सपनों के लिए
मैं चलना चाहती हुँ
मैं चलते रहना चाहती हुँ
अनाथों को अपनाया
बेसहारों को सम्भाला
असहायों का साथ निभाया
लाखों को शिक्षित बनाया
ये कर्तव्य रहा है मेरा
ये पहचान रही है मेरी
अपनी इसी पहचान के लिए
मैं चलना चाहती हुँ
मैं चलते रहना चाहती हुँ
मैं वही हुँ
जहाँ तुम्हारी ढेरों यादें जुड़ी हैं
यादें तुम्हारे बचपन की
यादें तुम्हारे लड़कपन की
दोस्ती के बड़प्पन की
यादें तुम्हारे पढ़ने की
यादें तुम्हारे खेलने की
साथियों के लंच लुटने की
वैसी ही हज़ारों नयी यादों के लिए
मैं चलना चाहती हुँ
मैं चलते रहना चाहती हुँ
आप जैसे अपनों के लिए
लाखों असहाय सपनों के लिए
भटकों को राह दिखाने के लिए
मजबूरों का साथ निभाने के लिए
बेसहारों के सहारे के लिए
शिक्षा रूपी उजाले के लिए
मैं चलना चाहती हुँ
मैं चलते रहना चाहती हुँ
मुझे ज़रूरत है
मेरे अपनों की
नए विचारों की
नए नवाचारों की
नए पहल की
क्योंकि मेरे अपनों के लिए
लाखों नए सपनों के लिए
मैं चलना चाहती हुँ
मैं चलते रहना चाहती हुँ
मैं शिक्षालय हुँ।
मैं दीपालय हुँ।
मैं विध्यालय हुँ।
शुक्रवार, 14 अगस्त 2020
बुधवार, 12 अगस्त 2020
निराशा : प्रदीप चौहान
तेरी ये लड़ाई तो ख़ुद से है,
गुरुवार, 7 मई 2020
हे मज़दूर तेरी कैसी ये गाथा है। : प्रदीप चौहान
Kavi Pradeep Chauhan |
सुविधावों की कमी जंजाल बन बैठा
ऑक्सीजन की कमी से तेरी सांसें थमती
संसाधनों के किल्लत से तेरी आँखें नमति
ये सिस्टम तेरा सब कुछ लूट ले जाता है
हे मज़दूर तेरी कैसी ये गाथा है।
हालातों का ज़िम्मेदार कौन पहचानना होगा
मृत सिस्टम का, क्यों नहीं करता तू उपचार है
हो एकजुट, की व्यवस्था परिवर्तन की दरकार है
सब समझकर भी तू चुप हो जाता है
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