ठंडी हवाएँ जब चेहरे से टकराती हैं
बिन बताए आँसू खिंच ले जाती हैं
कान पे पड़े तो कान सून्न
उँगलियों पे पड़े तो उँगलियाँ सून्न
दुखिया जूते का सुराख़ डूँढ लेती
उँगलियों की गर्माहट सूंघ लेती
बर्फ़ सा जमातीं
साँसें थमातीं
कंपकंपी सौग़ात दे जाती हैं।
सर्द भोर में
बारिश भी अख़ड़े
कि जैसे बाल मुड़े और ओले पड़े
डिगाए हिम्मत और साहस से लड़ें
गिराये पत्थर की सी बूँदें
जिधर मुड़ें उधर ही ढुन्ढे
चलाये ऐसे शस्त्र
भीग़ाये सारे वस्त्र
हड्डियों को थर्राये
लहू प्रवाह को थक़ाये।
पर हम भी बड़े ढीठ हैं
पिछली कई रातों की तरह
पैरासीटामोल का संग...एक और सही
खरासते गले से जंग...एक और सही
डूबते नाँव पे जमें रहना है...
होना अख़बार वाला।
अपनी ज़िम्मेदारियां ढोते रहना है...
होना अख़बार वाला।
ठंड, बारिश में चलते रहना है...
होना अख़बार वाला।