गुरुवार, 19 अगस्त 2021
तुम आई : प्रदीप चौहान
शनिवार, 31 जुलाई 2021
रविवार, 18 जुलाई 2021
स्लम एक सज़ा : प्रदीप चौहान
भाई-बेटों के मरे ज़मीर की सजा काटती है।
राखी व दूध के कर्ज़ चुकाई को तरसती है।
अपनों के मरे सम्मान का अपमान सहती हैं।
भाइयों के बेरुखी से शारीरिक मजबूती को तरसते हैं।
अभिभावकों की नाकामी से कलह उपजते हैं।
माँ पिता के असफल परवरिश की पोल खोलते हैं।
तमाशबीन गुनहगारों की नामर्दगी से बढ़ते हैं।
मंगलवार, 29 जून 2021
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा : प्रदीप चौहान
वक़्त तु ज़ुल्म इतना ना कर
यूँ बेरहमी की इंतहां ना कर
माना लाचार हैं हम तेरी मार से
पर नहीं रुकेंगे क्षणिक हार से
जीने का जज़्बा हमें उठाएगा
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा।
माना तैयारियाँ कम पड़ गई
अपनी ही साँसे मंद पड़ गई
आँखों में आँसुओं की धार है
शमशनों में विकराल क़तार है
जीने का जज़्बा हमें उठाएगा
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा।
अभी तो हमने कुछ किया ही नहीं
जीवन का हर रंग जिया ही नहीं
अपनों से किए वादे अभी अधूरे हैं
कई सपने हुए ही नहीं अभी पुरे हैं
जीने का जज़्बा हमें उठाएगा
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा।
इतनी जल्दी नहीं हारेंगे हम
हर अपने को सम्भालेंगे हम
तेरे हमलों से लड़ेंगे फिर इकबार
ख़ुद को खड़ा करेंगे फिर इक़बार
जीने का जज़्बा हमें उठाएगा
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा।
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा।
शनिवार, 13 मार्च 2021
तेरे माथे पर वो छोटी सी बिंदी : अमित सिंह
तेरे माथे पर वो छोटी सी बिंदी मुझे अच्छी लगती है
तू हस्ती रहा कर हस्ती मुस्कुराती मुझे अच्छी लगती है
तेरी हर एक अदा अदा कि सादगी मुझे अच्छी लगती है
तेरे होठों की हंसी आंखों की शरारत मुझे अच्छी लगती है
नजरे मिलाती नजरे चुराती नजरों की आवारगी मुझे अच्छी लगती है
तेरी नजरो की मेरी नजरो से वो हर मुलाकात मुझे अच्छी लगती है
जीन्स से ज्यादा तु सूट सलवार में मुझे अच्छी लगती है
तेरे हाथों मे कंगन की खनखनाहट मुझे अच्छी लगती है
तेरे कानों की बालियां नाक की नथनी मुझे अच्छी लगती है
तू मुझे एक बात पर नहीं हर बात पर अच्छी लगती है
सावन कि बरसात मे तु भीगती मुझे अच्छी लगती हे
सर्दी कि धुप में बालों को संवारती तु मुझे अच्छी लगती है
इठलाती बलखाती इतराती तु मुझे अच्छी लगती है
तेरे होठों की हंसी चहरे पर रोनक मुझे अच्छी लगती है
तेरे माथे पर वो छोटी सी बिंदी मुझे अच्छी लगती है
तू हस्ती रहा कर हस्ती मुस्कुराती मुझे अच्छी लगती है,
गुरुवार, 11 मार्च 2021
जीवित रहना जंग है : प्रदीप चौहान
Kavi Pradeep Chauhan |
अर्थव्यवस्था मंद है
महँगाई भई प्रचंड है
ग़रीब झेलता दंड है
जीवित रहना जंग है।
जेब सबके तंग हैं
कमाई हुई बंद है
ज़िंदगी कटी पतंग है
जीवित रहना जंग है।
कुछ घराने दबंग हैं
हर सत्ता उनके संग है
बेशुमार दौलती रंग है
जीवित रहना जंग है।
शासन सत्ता ठग है
बेइमानी बसा रग है
लूट-खसोट का जग है
जीवित रहना जंग है।
भावी पीढ़ी मलँग हैं
सुलगते नफ़रती उमंग हैं
बढ़ते धार्मिक उदंड हैं
जीवित रहना जंग है।
बेरोज़गारी भुज़ंग है
बेकारी करे अपंग है
हर जवाँ हुनर बेरंग है
जीवित रहना जंग है।
मज़दूर किसान तंग है
आन्दोलन पर बैठे संग है
कारपोरेट गोद में संघ है
जीवित रहना जंग है।
बुधवार, 10 मार्च 2021
भार : प्रदीप चौहान
हद से ज्यादा भार लेकर दौड़ा नहीं जाता
साथ सारा संसार लेकर दौड़ा नहीं जाता ।
दौड़ो अकेले अगर पानी है रफ़्तार
जिम्मेदारियों का पहाड़ लेकर दौड़ा नहीं जाता।
बदलाव : प्रदीप चौहान
अकेले चल इंसान बदल जाते हैं
ले साथ चलें तो बदलाव लाते हैं।
उस सफलता के मायने ही क्या
मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021
बचपन की वो यादें हसीन थीं : स्वीटी कुमारी
बचपन की वो यादें हसीन थीं
दोस्तों के साथ वो बातें हसीन थीं।
उनकी खुशी में खुश रहते थे हम
उनकी दुःख में दुःखी रहते थे हम
तो फिर ये मोड़ कैसा था
जिसमे होना पडा जुदा हमे
पता तो था की मिलेंगे दोस्त हर मोड़ पर
लेकिन स्कुल की तो बातें
कुछ और थी
की वो दोस्त पुराने थे
निराले थे
दील लगाने वाले थे
बात चीत कर के हर मुश्किल को सुलझाने वाले थे
इस लिए तो वह दोस्त हमारे थे।
बचपन की वो यादें हसीन थीं
दोस्तों के साथ वो बातें हसीन थीं।
शनिवार, 13 फ़रवरी 2021
एक ख्वाब : कैलाश मंडल
एक ख्वाब देखा,
जिसे पूरा करना है|
एक सपना है
जिसे अधूरा नहीं छोड़ना है |
रुकावटें तो कई आऐंंगी और जाएंगी
पर झुकना नहीं है|
एक सपना है
जिसे पूरा करना है|
एक ख्वाब देखा
जिसे पूरा करना है|
कहने वाले खुब कहेंगे,
पर सूनना नहीं है|
चाहे जितनी भी बार गिरे ,
खड़े होकर लक्ष्य को पाना है
साथ में खड़े हैं अपने,
जितनी भी बार गिरे हैं|
मेहनत कर
उस ख्वाब को पूरा करना है|
एक ख्वाब देखा
जिसे पूरा करना है |
बुधवार, 6 जनवरी 2021
चेतावनी : रोशन सिंह
रविवार, 3 जनवरी 2021
ठंड, बारिश और अख़बार वाला: प्रदीप चौहान
ठंडी हवाएँ जब चेहरे से टकराती हैं
बिन बताए आँसू खिंच ले जाती हैं
कान पे पड़े तो कान सून्न
उँगलियों पे पड़े तो उँगलियाँ सून्न
दुखिया जूते का सुराख़ डूँढ लेती
उँगलियों की गर्माहट सूंघ लेती
बर्फ़ सा जमातीं
साँसें थमातीं
कंपकंपी सौग़ात दे जाती हैं।
सर्द भोर में
बारिश भी अख़ड़े
कि जैसे बाल मुड़े और ओले पड़े
डिगाए हिम्मत और साहस से लड़ें
गिराये पत्थर की सी बूँदें
जिधर मुड़ें उधर ही ढुन्ढे
चलाये ऐसे शस्त्र
भीग़ाये सारे वस्त्र
हड्डियों को थर्राये
लहू प्रवाह को थक़ाये।
पर हम भी बड़े ढीठ हैं
पिछली कई रातों की तरह
पैरासीटामोल का संग...एक और सही
खरासते गले से जंग...एक और सही
डूबते नाँव पे जमें रहना है...
होना अख़बार वाला।
अपनी ज़िम्मेदारियां ढोते रहना है...
होना अख़बार वाला।
ठंड, बारिश में चलते रहना है...
होना अख़बार वाला।
रविवार, 4 अक्टूबर 2020
हे मेहनतकश तु कब समझेगा: प्रदीप चौहान
उपजाती में बाँटा
बाँटा अगड़े-पिछड़े और उपनाम
निजी स्वार्थ की पूर्ति को
ख़त्म किये नागरीक होने की पहचान
तेरे शोषण का है जाल
तेरी समानता पर प्रहार
मज़हब में बाँटा,
बाँटा पगड़ी, टोपी और पोशाक
धार्मिक स्वार्थों की पूर्ति को
ख़त्म किये इंसान होने की पहचान
तेरे शोषण का है जाल
तेरी इंसानियत पर प्रहार
हे मेहनतकश इंसान
तू कब समझेगा?
सपोर्ट में बाँटा
बाँटा भाषा, सोच और विचार
राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति को
किये तेरे अधिकारों का व्यापार
तेरे शोषण का है जाल
तेरी समझदारी पर प्रहार
हे मेहनतकश इंसान
तू कब समझेगा?
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क्षेत्रिय घेराव बना बिहार की मजबूरी समुन्द्र तट न होना है बड़ी कमजोरी नही अंतराष्टीय जान पहचान न कोई व्यापारिक आदान प्रदान स...
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रोज़गार व बेहतर ज़िंदगी की तलाश मे न चाहकर भी अपना घर परिवार छोड़कर शहरों मे आने का सिलसिला वर्षों से चलता आ रहा है। पलायन करने वाले हर व्य...
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Water problem in slum दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में पीने के पानी की समस्या वहाँ की सबसे बड़ी समस्या है। यहां युवाओं का झुंड आंदोलित है...