मंगलवार, 21 मई 2019

तुम्हें आगे ही आगे बढ़ना है : रमेश आनन्दानी

श्री रमेश आनन्दानी सर द्वारा, “ राष्ट्रीय युवा दिवस ”  के अवसर पर रचित एक कविता । जो फ़ेस्बुक पोस्ट से प्राप्त हुई। और युवाओं को प्रेरणा देती, उनमें जोश भरती एक बेहतरीन कविता है।

तुम युवा हो, तुम में जोश है
स्वयं को पहचानो तुम में होश है
आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ो
आकाश तुमने छूना है
तुम्हें आगे ही आगे बढ़ना है

अंतर न करो युवक युवती में
दोनों का लक्ष्य एक ही है जीवन में
साथ मिलकर चलेंगे तो आसान होगा
पत्थरों पर चलना दूब समान होगा
तुम्हें आगे ही आगे बढ़ना है |

पृथ्वी चल रही है चाँद भी चल रहा है
जीवन में प्रत्येक व्यक्ति चल रहा है
तुम्हें तो जुनून है मंज़िल को पाने का
फिर साथ रौशनी का हो या अन्धेरे का
तुम्हें आगे ही आगे बढ़ना है |

सफलता की राह में रोड़े बड़े मिलेंगे
धर्म और राजनीति के धोखे बड़े मिलेंगे
अपने सपनों व इरादों को विशाल करो
देश की सेवा के विश्वास को मशाल करो
तुम्हें आगे ही आगे बढ़ना है |

श्री रमेश आनन्दानी 

रविवार, 24 मार्च 2019

भूख: रोशन सिंह


भूख नहीं थी
कई दिनों से भूख नहीं थी,
क्योंकि घर में चून नहीं था,
काम कई जून नहीं था,
भीड़ थी, शोर था और लेबर चौक था
उस रोज़ जब काम मिला तो,
कुछ समय के लिये ही सही,
भूख से गिला मिटा

....रोशन सिंह....

शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

ज़मीर वालों तुम्हें सलाम : प्रदीप चौहान








युवाओं को राह दिखाया
हक़ के लिए लड़ना सिखाया
जब जब क़दम इनके लड़खड़ाए
ऊँगली पकड़ संभलना सिखाए
मार्गदर्शन से दिलाए कई मुक़ाम
ज़मीर वालों तुम्हें सलाम।

महिलाओं को बराबरी का हक़ दिलाया
किशोरियों को आगे बढ़ना सिखाया
पुरुष प्रधान बीमारी का किया काम तमाम
कुंठित मर्यादाओं का ख़त्म नामों निशान
समानता के रण में किये हांसिल कई मुक़ाम
ज़मीर वालों तुम्हें सलाम।

हक़ और सम्मान की लड़ी लड़ाई
बुनियादी ज़रूरतों की माँग उठाई
व्यवस्था परिवर्तन का लिए अरमान
राजनीतिक गलियरों को दिए कई फ़रमान
सैकड़ों आंदोलनों को दिया तुमने मुक़ाम
ज़मीर वालों तुम्हें सलाम।

बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ अनसन किए
न्यूनतम वेतन के लिए प्रदर्शन किए
किसानों के हक़ की लड़ी लड़ाई
सैनिकों के पेन्शन की आवाज़ उठाई
निंदित सरकारों का किया जीना हराम
ज़मीर वालों तुम्हें सलाम।

तुमने कभी झुकना नहीं सिखा
तुमने कभी टूटना नहीं सिखा
शोषण के ख़िलाफ़ की बुलंद आवाज़
दमन का डगमगाया साम्राज
हक़ की लड़ाई के तुम कलाम
ज़मीर वालों तुम्हें सलाम।



मंगलवार, 19 फ़रवरी 2019

जिस राह पर हम कभी मिला करते थे : रमेश आनन्दानी

स्वरचित ग़ज़ल

जिस राह पर हम कभी मिला करते थे
वहां के मंज़र अब भी वैसे ही खड़े हैं
तुम तो मुस्कुरा कर आगे मुड़ गए थे
हम अब भी वक्त को थामे वहीँ खड़े हैं |

सोचते हैं कभी शायद कोई बहार आएगी
जो तेरी साँसों से मंज़र को महकाएगी
कभी तो कोई हवा इस मोड़ की तरफ आएगी
जो तेरे शहर की खुशनुमा खबर लाएगी |

कभी तो यहाँ के गुलशन महका करते थे
अब तो वे भी तुम्हारी नज़रों का इंतज़ार करते हैं
हमारी खातिर तो तुमने कभी इधर का रुख किया नहीं
इन गुलों पर ही करम करो जो तबसे राह तकते हैं .

झूमकर जिन कदमों के साथ कभी हम चले थे
यह राहें अब भी उन कदमों को याद करती हैं
कभी फिर लौटकर आओगे इन फ़िज़ाओं में
इस उम्मीद से हर लम्हा, हर शय याद करती है |

याद करो उन रिमझिम बरसातों को
जिन में अक्सर हम भीगा करते थे
वो बरसातें हर बार सावन में
झूम - झूमकर तुम्हें याद करती हैं

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

कब तक शहादतें होती रहेंगी : प्रदीप चौहान

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए मिर्मम आतंकी हमले में जवानों के शहीद होने की बेहद ही दुःखद ख़बर से आहत और जवानों की सुरक्षा में असफलता के कारण उपजे कुछ प्रश्नों को इस कविता के ज़रिए उठाने की कोशिश की गई है।
वीर जवानों की शहादत को कोटि-कोटि नमन।

भिगोकर ख़ून में वर्दीयां
माताओं के लाल सोते रहेंगे
लिए मुल्क की मोहब्बत सच्ची
कई बेटे खोते रहेंगे
क्या सिलसिले-ए-शहादत
कड़ियाँ यूँ ही संजोते रहेंगी
बताओ ये मुल्क के आकाओं
कब तक शहादतें होती रहेंगी?

माँ जिन्हें लोरियाँ सुनाती हैं
कलाई जिनकी बहनें सजाती हैं
पिता जिन्हें चलना सिखाते हैं
भाई जिनको हँसते हँसाते हैं
क्या पंचतत्व में हो विलीन
आँखें अपनों की यूँ ही रोती रहेंगी
बताओ ये मुल्क के आकाओं
कब तक शहादतें होती रहेंगी?

पत्निया जिनके लिए श्रिंगार करती हैं
बिन्दी सिंदूर से माँग सजती हैं
तीज करवाचौथ उपवास रखती हैं
देख टुकड़े शरीर बेआवाक घुटती हैं
क्या तोड़ मंगलसूत्र सुहाग चूड़ियाँ
बन विधवा यूँ ही विलापती रहेंगी
बताओ ये मुल्क के आकाओं
कब तक शहादतें होती रहेंगी?

नन्हे नौनिहालों की लंगोटिया जाती रहेंगी
छोटी छोटी बेटियों की चोटियाँ जाती रहेंगी
विस्फोटों से जिस्म की बोटियाँ जाती रहेंगी
दर्जनो घरवालों की रोटियाँ जाती रहेंगी
क्या यूँ ही इस हैवान सियासत में
अपनों की अनमोल क़ुर्बानियां जाती रहेंगी
बताओ ये मुल्क के आकाओं
कब तक शहादतें होती रहेंगी?




गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

हक़ के लिए लड़ो स्लम के विरों : प्रदीप चौहान


छोटे छोटे कमरों में
जी रहे बन तुम लाचार
न स्नान का कोई प्रबंध
न शौच का कोई आधार
बुनियादी जरूरतों के मार झेलते जलिलों
हक़ के लिए लड़ो स्लम के विरों।

छोटी बहनें जाएं शौच खुले
सहती मनचलों के आघात
सत्ताधारी नही दे रहे सीवर की सौगात
कर पाएं सम्मान की उनके रक्षा
क्या इतनी भी नहीं औकात
हे राखी का कर्ज़ भूले फकीरों
हक़ के लिए लड़ो स्लम के विरों।

नहीं करते पार्क की व्यवस्था
न  बनाते खेल का मैदान
नुक्कड़ गलियों पे हो इकट्ठा
खेल रहे किशोर अब सट्टा
क्यों चुप बैठे तुम बधिरों
हक़ के लिए लड़ो स्लम के विरों।

न करते नौकरी की व्यवस्था
न करते रोजी रोटी का उपचार
न लाते न्यूनतम मजदूरी
कर रहे शोषण का प्रहार
क्यों बैठे तमाशबीन हे कुपोषित अमीरों
हक़ के लिए लड़ो स्लम के विरों।

खालीपन खुशियों को खा रहा
जवां पीढ़ी अवसाद में जा रहा
बेरोजगारी की ऐसी पड़ रही मार
नौजवां हो रहे नशे में शुमार
क्यों सह रहे सब साक्षर धिरों
हक़ के लिये लड़ो स्लम के विरों।
(प्रदीप चौहान)

मंगलवार, 13 नवंबर 2018

सत्ता के बिसात पर देश के हालात : प्रदीप चौहान


लूट गरीबों मजदूरों की रोटियां
भर रहे व्यापारिक घरानों की तिजोरियां
आर्थिक, सामाजिक मोर्चे पर विफल
हड़प देश की सम्पति कर रहे रंगरेलियां।

पेट्रोल, गैस की कीमतें चढ़ीं आसमान
गिरते रुपए की गरिमा का नही समाधान
नोटेबंदी में छोटे व्यवसायी भये बर्बाद
देश की टूटनी अर्थव्यस्था शहती घोर अपमान।

विदेशों से कालाधन नही वापस है आया
हजारों करोड़ सफेद धन भी दे भगाया
अम्बानी अडानी भये दिन-ब-दिन मालामाल
नोटबन्दी का कुचक्र है ऐसा चलाया।

बेरोज़गार युवाओं में बढ़ती हताशा
किसानों के मौत हो रहे बेतहाशा
महंगाई से गरीब जनता का जीना दुर्लभ
न ढूंढें समाधान करें भीड़ में तमाशा।

पाकिस्तान के खिलाफ कुछ करने का नही माद्दा
कश्मीर समस्या सुलझाने का नही कोई इरादा।
धार्मिक वर्गीकरण सिर्फ वोट बैंक की राजनीति
राम मंदिर के नाम धार्मिक उत्पात को आमादा।

साधु-संतों को बारम्बार हैं उकसाते
धार्मिक भावनाओं को हरबार हैं भड़काते
बिगाड़कर देश का सांप्रदायिक माहौल
कर दंगे-फसाद भाई भाई को हैं लड़वाते।

धर्मांध जनता को अपने पीछे है लाना
गोलबंदी का मकसद सिर्फ वोट बैंक बनाना
लगाकर पुलिस , सी बी आई ,मौकापरस्त नेता
बिछाते बिसात की हर हाल में सत्ता है कब्जाना।

शनिवार, 27 अक्टूबर 2018

प्रगतिशील इश्क़ : प्रदीप चौहान

प्रगतिशील विचारों से ताल्लुक़ रखने वाले शादीशुदा जोड़े के दैनिक जीवन मे परवान चढ़ते इश्क़ को विभिन्न रूपों व विभिन्न हालातों में व्यक्त करने की कोशिश की गई है।

शादी के बाद की
वो पहली डेट
कई जोड़ो के बाद लगा 
मनमाफिक सेट
गांव की कली 
शहरी रंगों में रंगी थी
दिल्ली दर्शन अभिलाषी 
बन ठन कर चली थी
किया छल ले चला था देने धरना
कराया रूबरू क्या होता जनाक्रोश
'निर्भया कांड' से आहत
आंदोलनकारियों का जोश
संघर्षित हुजूम में
पग-पग संभलना
लिए हाँथों में हांथ
तेरे साथ-साथ चलना
धक्कों के बहाव में
तुझे आग़ोश में भरना
तेरा ध्यान रखना
ये ही तो है मेरा...
प्रगतिशील इश्क़।

हुई आक्रोशित थी तुम
सुन मिर्मम अत्याचार
पुरूष प्रधान समाज का 
देख उदंड चेहरा बारम्बार
आयी आंखों में नमी तेरे
थे लबों पे कई सवाल
कर हाँथ खड़े 
मेरे साथ खड़े
भरी थी तूमने भी हुंकार
गूंजी थी फ़िजा में
अन्याय के खिलाफ हर आवाज़
तेरे माथे की झूरियों को समझना
तेरे चेहरे की कुलकारियों को सहेजना
पल दर पल नजरों का मिलना, 
नयनों ही नयनों में 
सबकुछ कहना
ये ही तो है मेरा...
प्रगतिशील इश्क़।

चांदनी रात में भोर तक जगना
चर्चाओं के दौर पे दौर का चलना
तथ्यांत्मक प्रहारों से 
तेरा मुझसे झगड़ना
तर्क-वितर्क की सवारी कर
तेरा मुझपर चढ़ना
नासमझी को भी तेरे, 
समझदारी में बदलना
शिद्दत से तुझे सुनना
तेरी आंखों को तकना
तेरी लबों पे भटकना
ये ही तो है मेरा...
प्रगतिशील इश्क़।

नही मलाल की न दे पाया 
तुझे बंगला या गाड़ी
नही किया तूने कभी
सफ़ारी की सवारी 
हर कदम किया कोशिश
की बने तू एक सबल नारी
कुंठिक मर्यादावों को पटक
दिया बराबरी का हक़
जीवन के उतार चढाव में 
तेरे संग-संग चलना
हर पल-हर कदम 
तेरे ही रंग में रंगना
ये ही तो है मेरा...
प्रगतिशील इश्क़।

सोमवार, 22 अक्टूबर 2018

पढ़ाई करूँ या मैं पानी भरूँ ? : प्रदीप चौहान

दिल्ली की सत्ता पे काबिज़ सरकार के द्वारा घर घर पीने का पानी देने में असफलता के कारण हजारों बच्चों की पढ़ाई व स्कूल तक छूट जाते हैं। उन बच्चों के कुछ प्रश्नों के द्वारा स्लम कॉलोनियों में बच्चों के शिक्षा पर पड़ रहे प्रभाव को इस कविता के जरिये बयां करने की कोशिश की गई है।
Water Problems in Slum

पिता पर पेट की ज़िम्मेदारी
माँ पर भविष्य की ठेकेदारी
रुक भरें पानी तो बेरोज़गारी की मार
स्कूलों से ऊंचा तेरे पानी का ताड़
बता ये दिल्ली के सुल्तान
पढ़ाई करूँ या मैं पानी भरूँ।

कहीं पानी की भरमार
तो कहीं सूखे से हाहाकार
दोहरे बर्ताव से विलुप्त मेरी शिक्षा
क्या मेरी बस्ती है मुल्तान
बता ये दिल्ली के सुल्तान
पढ़ाई करूँ या मैं पानी भरूँ।

सुना है आंदोलन से तू आया
विकास का जिन था तुझमे समाया
दियेे दिल्ली की सत्ता में तुझे सम्मान
पर लाकर टैंकर की गंदी राजनीति
कर रहा आम जनता का अपमान
बता ये दिल्ली के सुल्तान
पढ़ाई करूँ या मैं पानी भरूँ।

किस काम के तेरे गगनचुम्बी स्कूली ताज
मैं कल को सवारूँ या बचाऊं मेरा आज
दिए प्रलोभन मुफ्त होगा लिटर बीसों हजार
मेरी बस्तिया झेल रहीं बून्द बून्द की मार
बता ये दिल्ली के सुल्तान
पढ़ाई करूँ या मैं पानी भरूँ।

शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2018

अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी। : प्रदीप चौहान


क्षेत्रिय घेराव बना बिहार की मजबूरी
समुन्द्र तट न होना है बड़ी कमजोरी
नही अंतराष्टीय जान पहचान
न कोई व्यापारिक आदान प्रदान
सह रहे रोजी रोटी की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

एक हिस्से में बाढ़ का अत्याचार
दूजा हिस्सा झेलता सुखे की मार
छोड़ना पड़ जाता लाखों को घर बार
पलायन ही बचता जीवन आधार
सह रहे कुदरत की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

बिजली, सड़क की जर्जर अवस्था
सरकार न कर पायी निवेशकों की व्यवस्था
शुगर मिल व उर्वरक भी हुए बन्द
विकास की गति सबसे ज्यादा है मंद
सह रहे राजकीय विफलता की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

सियासी फायदों से राज्य हुआ विखंड
खनन-खनिज सब गए झारखंड
न टाटा रहा,न हांथ रहा बोकारो शहर
न बचा उद्योग,गिरा रोजी रोटी पे कहर
सह रहे सियासी बंटवारे की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

भाड़ा समीकरण निति, ऐसी कूटनीति
माल ढुलाई में सरकारी छुट की राजनीति
लूट गया बिहार का कच्चा माल
महाराष्ट्र, गुजरात भये मालामाल
सह रहे प्रांतीय शोषण की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

आये ऐसे भ्रस्ट नेता, चारा तक को लपेटा
न शुरू किया कोई धंधा, न बड़ा व्यापार
जातिय राजनीति से राज्य का किया बंटाधार
विकास के दौड़ में बिहार हुआ असफल हरबार 
सह रहे भ्रस्टाचार की मार
अपने ही देश में प्रवासी हैं बिहारी

प्रदीप चौहान

सोमवार, 8 अक्टूबर 2018

अराजकता बढ़ाया जा रहा : प्रदीप चौहान

बुद्धिजीवियों को धमकाया जा रहा
सामाजिक कायकर्ताओं को डराया जा रहा
कि चलता रहे खास तबके का राज़
कि न उठाये कोई दबे कुचलों की आवाज़
फर्जी आरोपों में करके गिरफ्तारियां
अराजकता बढ़ाया जा रहा।

धार्मिक भावनाओं को उकसाया जा रहा
"एक तबका" निशाना बनाया जा रहा
भीड़ को देकर सनकी अभिमान
गुनाहगारों की न करता कोई पहचान
सियासी मंसूबों की पूर्ति के लिए
अराजकता बढ़ाया जा रहा।

"बेरोजगारी" मुद्दे से भटकाया जा रहा
"शिक्षा में असफलता" से ध्यान हटाया जा रहा
कि न कर पाए कोई असल मुद्दों पर चर्चा
किया जा रहा मोब लींन्चिंग खबरों पर खर्चा
पुलिस पर लगा पाबंदियां अपार
अराजकता बढ़ाया जा रहा।

अमीरों को फायदा पहुंचाया जा रहा
हर क्षेत्र, निजी हांथों में लुटाया जा रहा
राज्य की हो रही कठपुतली पहचान
कुछ घरानों के हांथ है देश की कमान
कानून को कर कमजोर व लाचार
अराजकता बढ़ाया जा रहा।

प्रदीप चौहान

मंगलवार, 2 अक्टूबर 2018

घर घर पानी अब लेके रहेंगे : प्रदीप चौहान

Water problem in slum
दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में पीने के पानी की समस्या वहाँ की सबसे बड़ी समस्या है। यहां युवाओं का झुंड आंदोलित है इस मांग को लेकर की उन्हें भी पीने का पानी मिले, भीख की तरह न मिलकर सम्मान पूर्वक मिले। आंदोलन से सबको जोड़ने, जागरूक करने और एकजुट करने के आहवान के रूप में गाया जाने वाला गीत रूपी कविता।

लड़ेंगे, जीतेंगे, डटे रहेंगे
घर घर पानी अब लेके रहेंगे

अब कोई माँ नहीं टंकी ढोएगी
अब कोई बहन नही टेंकर पे रोयेगी

आओ रे दोस्तो, आओ रे भाई
घर घर पानी की मांग है लड़ाई

अब किसी पिता की जाए ना नौकरी
अब किसी भाई की छुटे ना पढ़ाई

हक और सम्मान की है ये लड़ाई
घर घर पानी की मांग है लड़ाई

अब कोई जवां नही ढोएगा झंडा
अब कोई दोस्त नहीं खायेगा डंडा

जो मेरा हाल है, वो ही तेरा रे भाई
भूल आपसी मतभेद, चलो करो रे चढ़ाई

आओ रे आओ, जमीर को बचाओ
आओ रे आओ, सम्मान ना गँवाओ

माताओं के ये सम्मान की लड़ाई
बहनों के राखी के कर्ज की चुकाई

पिता के पगड़ी की लाज हम बचाएं
नासूर भये हालातों में बदलाव हम लाएं

आओ रे दोस्तों आओ रे भाई
घर घर पानी की मांग है लड़ाई

लड़ेंगे, जीतेंगे, डटे रहेंगे
घर घर पानी अब लेके रहेंगे

प्रदीप चौहान

सोमवार, 10 सितंबर 2018

नही बेटे...अकेले बाहर नही जाते : प्रदीप चौहान

ये कविता छोटी छोटी बच्चियों के साथ हो रहे बलात्कार, यौन शोषण व अत्याचार की वजह से आहत एक माँ के द्वारा अपनी नन्ही बेटी को दी जाने वाली शिक्षा पर आधारित है। और एक पिता के चिंतन के द्वारा समाज का आईना प्रस्तुत करने की एक कोशिश है।
मन में उमंग, 

चेहरे पर हंसी
नज़रों में जिज्ञासा, 
कुछ जानने की आशा
लुभाती किसी चीज के लिए
जैसे ही बेटी ने कदम बाहर बढ़ाये
थमें पैर सुन माँ की तेज आवाज़
"नही बेटे...अकेले बाहर नही जाते"।



आया माथे पर सिकन, 
चेहरा मुरझाया
बेटी ने कदम पापा की ओर बढ़ाया
"क्यो पापा ?" 
बेटी ने ये प्रश्न सुनाया
आंखों में टकटकी, 
जवाब न समझ आया।
पत्नी पर क्रोध उमड़
विचलित मन 
कारण की ओर दौड़ाया
एक माँ के मन मे ये विचार क्यों आया
तो हलख से एक शब्द भी न निकल पाया।



ये सिख जीस आधुनिक माँ ने रटाया
शिक्षित, प्रशिक्षित, तकनीक की ज्ञानी
काम पर जाती, 
बच्चों को पढ़ाती
घर की सारी जिम्मेदारियां मजबूती से निभाती।
दिन की शुरुआत करती 
अखबार की मोटी लाइनें
छेड़खानी,बलात्कार सुसज्जित समाज के आइनें
सोशल मीडिया स्करोलिंग में ये ही पाती बार बार
मन को आघात करते, 
टीवी पर सनसनी खबरों की भरमार।



याद है कठुआ, सूरत, मणिपुर के हादसे
आठ की उम्र में बच्चियों से बलात्कार
निर्मम, अमानवीय कृत्य ने 
हर माँ का दिल दहलाया
ऐसे इतिहास ने 
खुद को कई बार है दोहराया।
सोचता हूँ ये शिक्षाएं 
बेटीयों पर क्या असर लाएंगी
बचपन से सुनी ये लाइनें 
मस्तिष्क में घर बनाएंगी
अनजान डर उसके हिम्मद को डिगायेंगी
ढूढेंगी किसी का साथ हर क़दम
पंखों को बेड़ियां लग जाएंगी।



जब जब नारी आगे आयी है
तब तब पुरुष समाज हावी है
तोड़ना होगा ये मनुवादी इतिहास
हर पिता, भाई, बेटे की 
ये जिम्मेदारी है
ताकि कोई माँ न कहे 
किसी बेटी से
" नही बेटे...अकेले बाहर नही जाते।

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

क्यों सो रहा तू नौजवान। : प्रदीप चौहान

क्यों सो रहा तू नौजवान।

न हो करियर में असमंजस
कि दूर तक तुझे है जाना
न रख कोई बैर न रंजिश
कि तुझे खुद को नहीं उलझाना
तुझमे है जज्बा रच सफलता का इतिहास
क्यों सो रहा तू नौजवान।

अपनी क्षमताओं का स्मरण कर
अपनी कमियों का तू मरण कर
तू सिख नित नए हुनर
अपनी अच्छाइयों की बुनियाद पर
चल गगन पर तू परचम लहरा
क्यों सो रहा तू नौजवान।

है करियर में भटकाव बहोत
हर मोड़ पर टकराव बहोत
उलझनें मिलेंगी हर कदम
अड़िग बना तेरी इच्छाशक्ति और दम
तू जीत सकता है सबको पछाड़
क्यों सो रहा तू नौजवान।

सुलगाई जा रही धर्म की चिंगारी दिलों में
लगाई जा रही हिन्दुत्व की आग सीनों में
कुछ अपने निजी स्वार्थ के लिए 
बिछा रहे बिसात विध्वंस की
इस भस्मासुर को न होने दे विकराल
क्यों सो रहा तू नौजवान।

मुद्दे से तुझको भटकाया जा रहा
बुनियादी जरूरतों के लिए तरसाया जा रहा
चुनाव में तुझको भुनाया जा रहा
छोटी छोटी मांगों के लिए नचाया जा रहा
न मरने दे तेरा ज़मीर, तू बन खुद्दार
क्यों सो रहा तू नौजवान।

शोषण अपने चरम पर है
दमन का हर जगह परचम है
लूट खसोट बना सबसे बड़ा व्यापार है
बेसब्री बन रहा युवाओं का जंजाल है
न बनने दे भ्रष्टाचार लोगो की पहचान
क्यों सो रहा तू नौजवान।

Kavi Pradeep Chauhan