मंगलवार, 31 अगस्त 2021
सोमवार, 30 अगस्त 2021
क़सम : प्रदीप चौहान
हताशा
हे मज़दूर।
हे मज़दूर तेरी कैसी ये गाथा है।
तेरी मेहनत ने लोगों के घर बनाए
खून पसीनों से तूने महल सजाए
ख़ुद की छत के लिए जीवन भर तरसे
बेघर तेरा जीवन, बेघर तेरी क़िस्मत
तू बेघर ही मर जाता है
हे मज़दूर तेरी कैसी ये गाथा है।
रविवार, 29 अगस्त 2021
पहचान : प्रदीप चौहान
कभी बेटा तो कभी भ्राता बन जाता हूं।
कभी पति तो कभी पिता कहलाता हूं।
कर्ज़ व फ़र्ज़ निभाते कई किरदार मेरे।
पर खुद को कभी नहीं पहचान पाता हूं।
गुरुवार, 26 अगस्त 2021
सिटीज़न जर्नलिज़्म अपनाना होगा : प्रदीप चौहान
इंसानों को बचावो यारो : प्रदीप चौहान
बुधवार, 25 अगस्त 2021
मंगलवार, 24 अगस्त 2021
गुनाहगार वो हैं जो आज मौन हैं: प्रदीप चौहान
गुरुवार, 19 अगस्त 2021
तुम आई : प्रदीप चौहान
शनिवार, 31 जुलाई 2021
रविवार, 18 जुलाई 2021
स्लम एक सज़ा : प्रदीप चौहान
भाई-बेटों के मरे ज़मीर की सजा काटती है।
राखी व दूध के कर्ज़ चुकाई को तरसती है।
अपनों के मरे सम्मान का अपमान सहती हैं।
भाइयों के बेरुखी से शारीरिक मजबूती को तरसते हैं।
अभिभावकों की नाकामी से कलह उपजते हैं।
माँ पिता के असफल परवरिश की पोल खोलते हैं।
तमाशबीन गुनहगारों की नामर्दगी से बढ़ते हैं।
मंगलवार, 29 जून 2021
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा : प्रदीप चौहान
वक़्त तु ज़ुल्म इतना ना कर
यूँ बेरहमी की इंतहां ना कर
माना लाचार हैं हम तेरी मार से
पर नहीं रुकेंगे क्षणिक हार से
जीने का जज़्बा हमें उठाएगा
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा।
माना तैयारियाँ कम पड़ गई
अपनी ही साँसे मंद पड़ गई
आँखों में आँसुओं की धार है
शमशनों में विकराल क़तार है
जीने का जज़्बा हमें उठाएगा
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा।
अभी तो हमने कुछ किया ही नहीं
जीवन का हर रंग जिया ही नहीं
अपनों से किए वादे अभी अधूरे हैं
कई सपने हुए ही नहीं अभी पुरे हैं
जीने का जज़्बा हमें उठाएगा
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा।
इतनी जल्दी नहीं हारेंगे हम
हर अपने को सम्भालेंगे हम
तेरे हमलों से लड़ेंगे फिर इकबार
ख़ुद को खड़ा करेंगे फिर इक़बार
जीने का जज़्बा हमें उठाएगा
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा।
हे बुरे वक़्त तु गुज़र जाएगा।
शनिवार, 13 मार्च 2021
तेरे माथे पर वो छोटी सी बिंदी : अमित सिंह
तेरे माथे पर वो छोटी सी बिंदी मुझे अच्छी लगती है
तू हस्ती रहा कर हस्ती मुस्कुराती मुझे अच्छी लगती है
तेरी हर एक अदा अदा कि सादगी मुझे अच्छी लगती है
तेरे होठों की हंसी आंखों की शरारत मुझे अच्छी लगती है
नजरे मिलाती नजरे चुराती नजरों की आवारगी मुझे अच्छी लगती है
तेरी नजरो की मेरी नजरो से वो हर मुलाकात मुझे अच्छी लगती है
जीन्स से ज्यादा तु सूट सलवार में मुझे अच्छी लगती है
तेरे हाथों मे कंगन की खनखनाहट मुझे अच्छी लगती है
तेरे कानों की बालियां नाक की नथनी मुझे अच्छी लगती है
तू मुझे एक बात पर नहीं हर बात पर अच्छी लगती है
सावन कि बरसात मे तु भीगती मुझे अच्छी लगती हे
सर्दी कि धुप में बालों को संवारती तु मुझे अच्छी लगती है
इठलाती बलखाती इतराती तु मुझे अच्छी लगती है
तेरे होठों की हंसी चहरे पर रोनक मुझे अच्छी लगती है
तेरे माथे पर वो छोटी सी बिंदी मुझे अच्छी लगती है
तू हस्ती रहा कर हस्ती मुस्कुराती मुझे अच्छी लगती है,
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